iGrain India - नई दिल्ली । अगस्त के मध्य में ऐसी खबर आई थी कि भारत और रूस गेहूं आयात-निर्यात की संभावना पर विचार-विमर्श करने वाले हैं। इसके तहत भारत को रूस से रियायती मूल्य 80-90 लाख टन गेहूं आपूर्ति की संभावना तलाशी जा रही थी।
वैसे दोनों देशों की सरकार की तरफ से इस संबंध में कोई सकरात्मक आधिकारिक बयान नहीं दिया गया और इसलिए धीरे-धीरे यह मामला शांत पड़ गया। लेकिन भारत में जिस तरह के हालात बन रहे हैं उससे रूसी गेहूं के आयात की संभावना पुनः बढ़ने लगी है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि गेहूं एवं इसके उत्पादों के ऊंचे बाजार भाव ने केन्द्र सरकार की चिंता काफी बढ़ा दी है। सरकार इस पर अंकुश लगाने का हर संभव प्रयास कर रही है लेकिन इसका सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आ रहा है।
जून के अंतिम सप्ताह से खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत केन्द्रीय पूल से कम दाम पर गेहूं की बिक्री आरंभ की गई और फिर गेहूं पर भंडारण सीमा लागू की गई।
अब इस सीमा के तहत व्यापारियों, थोक विक्रेताओं एवं बिग चेन रिटेलर्स के लिए गेहूं के स्टॉक की मात्रा 3000 टन से घटाकर 2000 नियत की गई है ताकि खुले बाजार में इसकी आपूर्ति आरंभ कर दिया है कि फ्लौर मिलों के पास घोषित स्टॉक से ज्यादा गेहूं तो नहीं मौजूद है। गेहूं एवं इसके उत्पादों पर पिछले साल से ही निर्यात प्रतिबंध लागू है।
उद्योग-व्यापार क्षेत्र का कहना है कि गेहूं का घरेलू उत्पादन सरकारी अनुमान से काफी कम हुआ है और इसलिए ऊंची कीमतों के बावजूद थोक मंडियों में इसकी सीमित आपूर्ति हो रही है।
सरकार को गेहूं के आयात पर लगे 40 प्रतिशत के भारी-भरकम शुल्क को समाप्त कर देना चाहिए और विदेशों से इसके शुल्क मुक्त आयात की अनुमति देनी चाहिए।
घरेलू बाजार पर इसका गहरा मनोवैज्ञानिक असर पड़ सकता है। इसके साथ-साथ रूस इस सरकारी स्तर पर सस्ते गेहूं के आयात का विकल्प भी खुला रखना चाहिए।