नई दिल्ली, 21 अगस्त (आईएएनएस)। 21 अगस्त 1911 की सुबह थी। ऊंघता पेरिस अंगड़ाई ले रहा था। लूव्र म्यूजियम के आस पास शांति थी। इसी दौरान तीन शख्स भारी कंबल की परत के भीतर म्यूजियम से कुछ लेकर जाते दिखे। क्या था इनके हाथों में! इसका जवाब अगले 24 घंटे तक किसी के पास नहीं था। इन चोरों के हाथ में लियोनार्डो द विंची की मोनालिसा थी। अमर कृति जो चोरी होने के बाद चर्चा में आई। दो साल बाद मिली तब पता चला कि चोरी की वजह क्या थी!कहानी की शुरुआत रेनेसां काल से होती है। यूरोप 14वीं से 17 वीं सदी के बीच रेनेसां यानि पुनर्जागरण के दौर से गुजर रहा था। बदलाव की बयार बह रही थी। सांस्कृतिक और धार्मिक आंदोलन का दौर था। पढ़ा लिखा तबका अपने हुनर को मांझ रहा था। कला के क्षेत्र में अभूतपूर्व काम हो रहा था लियोनार्डो भी ऐसे ही सर्वगुण संपन्न शख्सियत थे। चित्रकार, ड्राफ्ट्समैन, इंजीनियर, वैज्ञानिक, सिद्धांतकार, मूर्तिकार और वास्तुकार ऑल इन वन!
किस्सा कुछ यूं है कि लियोनार्डो द विंची ने मोनालिसा को इतालवी रईस फ्रांसेस्को डेल जियोकोंडो के लिए बनाना शुरू किया। लेखक और इतिहासकार जेम्स सुग के मुताबिक यह उनकी पत्नी लिसा डेल जियोकोंडो थीं।
माना जाता है कि इस पेंटिंग को फ्रांसेस्को डेल जियोकोंडो ने अपने नए घर के लिए और अपने दूसरे बेटे के जन्म से पहले बनवाया था। लेकिन फिर ये उनके हाथ नहीं लगी। संग्रहालय में टांग दी गई।
विंची के निधन बाद ये फ्रांस के राजा के पास रही और 1797 से ये लूव्र संग्रहालय में शामिल की गई। हैरानी की बात ये है कि दशकों तक आलोचकों ने इसे पुनर्जागरण चित्रकला की उत्कृष्ट कृति नहीं माना। फ्रांसीसी बुद्धिजीवियों के एक छोटे वर्ग में ही चर्चा का विषय बनी रही।
21 अगस्त ही वो तारीख थी जिसने मोनालिसा को उसका मुकाम दिला दिया। इतिहासकार सुग ( विदेशी पत्रिका में छपे लेख) के मुताबिक तब तक मोनालिसा गैलरी की प्रसिद्ध पेंटिंग भी नहीं थी।
डोरोथी और टॉम हूबलर ने अपनी किताब, द क्राइम्स ऑफ पेरिस (2009) में पेंटिंग की चोरी के बारे में लिखा। वे कहते हैं कि 28 घंटे बीत गए, जब तक किसी को भी चार खाली हुक नज़र नहीं आए।
जिस व्यक्ति ने देखा वह एक ज़िद्दी स्टिल-लाइफ़ कलाकार था। पेंटर को गैलरी का हिस्सा रंगना था। टॉम हूबलर कहते हैं, "उसे लगा कि जब तक 'मोनालिसा' नहीं होगी, वह काम नहीं कर सकता।" उसने गार्ड्स को ऊपर की गैलरी में भेजा। जब वह लौटे तो बताया दीवार तो खाली पड़ी है।
हंगामा बरपा। तब अखबारों के आर्टिकल में इसे मास्टरपीस का खिताब मिला। लिखा गया कि अब तक के इतिहास की सबसे बड़ी चोरी। एक हफ्ते तक संग्रहालय बंद रहा। खुला तो लोग उस खाली हुक को निहारने के लिए टूट पड़े।
पहले चोरी का शक पाब्लो पिकासो पर गया। खूब पूछताछ हुई लेकिन फिर उन्हें छोड़ दिया गया। दरअसल चोरी में म्यूजियम में ही फ्रेम गढ़ने वाले शख्स का हाथ था। नाम था विन्सेन्जो पेरुगिया। जो चोरी के एक दिन पहले अपना काम खत्म करने के बाद बाहर नहीं आया बल्कि अपने दो अन्य साथियों (दोनों भाई थे-विन्सेन्ज़ो और मिशेल लैंसेलोटी ) संग आर्ट गैलरी की एक अलमारी में जाकर छिप गया। सारी रात वहीं रहने के बाद सुबह साथियों संग इस वारदात को अंजाम दिया।
28 महीने बाद पकड़े जाने पर विन्सेन्ज़ो पेरुगिया ने कहा कि मकसद सिर्फ एक था इसके असली मालिक के सुपुर्द करना। उसके मुताबिक यह इटली की धरोहर थी और उसके पास ही रहनी चाहिए थी।
इस तरह चोरी हुई मोनालिसा लियोनार्डो द विंची की बेस्ट कलाकृति साबित हुई। मास्टरपीस जिसकी मिसाल पूरी दुनिया देती है।
--आईएएनएस
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