iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि 20 जुलाई को कच्चे (सफेद) ग़ैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय न्यायोचित था क्योंकि सरकार की पहली प्राथमिकता घरेलू प्रभाग में इस महत्वपूर्ण खाद्यान्न की पर्याप्त आपूर्ति एवं उपलब्धता सुनिश्चित करना तथा कीमतों पर नियंत्रण रखना है।
मानसून तक अल नीनो की हालत अनिश्चित है। भारत केवल अधिशेष स्टॉक वाले चावल का निर्यात कर सकता है। यूक्रेन से शिपमेंट बंद होने के कारण वैश्विक खाद्य बाजार में आने वाली तेजी का भारत से कोई लेना देना नहीं है।
भारत सरकार ने सभी किस्मों एवं श्रेणियों के चावल का निर्यात नहीं रोका है बल्कि सिर्फ कच्चे चावल के शिपमेंट पर प्रतिबंध लगाया है। इससे पहले टुकड़ी चावल के निर्यात पर पिछले साल रोक लगाई गई थी। सेला चावल एवं बासमती चावल का निर्यात पूरी तरह खुला हुआ है।
दरअसल अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत सरकार से सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय को वापस लेने का आग्रह किया था।
हालांकि सरकार की तरफ से इस पर कोई औपचारिक टिप्पणी या प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है लेकिन जानकारों का कहना है कि भारत सरकार को अपनी आंतरिक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु किसी भी तरह का निर्णय लेने का पूरा अधिकार है और वैश्विक खाद्य सुरक्षा का दायित्व सिर्फ भारत पर नहीं है।
भारत सरकार घरेलू उपभोक्ताओं को कठिनाई में डाल कर अन्य देशों के लोगों का पेट भरने के लिए बाध्य नहीं है। मालूम हो कि पिछले साल जब मई में सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था तब अमरीका एवं यूरोपीय संघ ने इसे वापस लेने के लिए भारत पर भारी दबाव डाला था।
लेकिन सरकार अपने निर्णय पर अडिग रही। इस बार भी हालत वैसी ही है। अगले साल भारत में लोकसभा के लिए आम चुनाव होने वाला है इसलिए सरकार कोई जोखिम नहीं उठाना चाहेगी।
यदि मौसम अनुकूल तथा केन्द्रीय पूल में पर्याप्त स्टॉक मौजूद होता तो शायद कच्चे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत ही नहीं पड़ती।