दुनिया के सबसे अधिक महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा के लिए, हर साल विश्व के 20 सबसे शक्तिशाली देशों के हेड्स की G 20 की बैठक में आम सहमति बनना हालाँकि आसान नहीं होता । जबकि इस बार तो ये एकजुट सहमति बिलकुल असंभव सी लग रही थी, परन्तु सुब कुछ इतनी आसानी से निबट गया कि विश्वास ही नहीं होता।
टैरिफ ट्रेड वार पर चर्चा के बीच, ईरान पर छाए भू-राजनीतिक तनाव, और जलवायु परिवर्तन पर यूरोप में चल रहे बड़े पैमाने पर विरोध, इत्यादि मसलों को लगता है इस बातचीत की प्रक्रिया में शामिल ही नहीं किया गया, जिन पर प्रश्न ही नहीं पूछे गए। जिन पर डिस्कशन किया जाना चाहिए था , क्योंकि यह वार्ता सार्वजनिक नहीं थी।
शिखर सम्मेलन के आधिकारिक तौर इस बार G 20 समिट पूरी होने से पहले ही, एक जर्मन अधिकारी ने पहले ही चेतावनी दी थी कि प्रारंभिक वार्ता बेहद कठिन साबित हो रही है। जब नेताओं के शेरपाओं के बीच बातचीत शुरू हुई, तो वे शनिवार की शुरुआत तक अंतिम संवाद के साथ आने की कोशिश कर रहे हैं, वहीँ फाइनल विज्ञप्ति का ड्राफ्ट मसौदा छोटा और छोटा होता जा रहा था ।
डर यह था कि फाइनल रेसोलुशन पर, लाल कलम का यूज़ मेंबर्स को कम से कम करना पड़े। दो डेलीगेट्स इतने निराशावादी थे कि उन्होंने एक भी नियम नहीं बनाया।
जैसा कि ब्यूनस आयर्स के नवीनतम G-20 नेताओं के शिखर सम्मेलन में सच था, कि ट्रेड और एन्वायरमेंट पर फिर से सबसे अधिक डिस्कशन किया जाना तय था। यधपि, जापान में शुक्रवार दोपहर तक, जलवायु के मुद्दों पर डिस्कशन के लिए, उन पॉइंट्स के तीन अलग-अलग भाषाओं के संस्करण थे ।
जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिकी जलवायु को फाइनल ड्राफ्ट के किसी भी पैराग्राफ में शामिल करने के लिए समझौते नहीं चाहते थे। यू.के. और अन्य यूरोपीय देश कम से कम पिछले शिखर पर सहमत हुई भाषा को बनाए रखना चाहते थे । तुर्की, दक्षिण अफ्रीका और ब्राज़ील कहीं बीच में हैं, यह मांग करते हुए कि अमीर देश विकासशील देशों की सहायता के लिए अपनी प्रतिबद्ध रहें।
वहीँ दूसरी ओर, चीन स्टील उत्पादन को कम करने के मुद्दे बिलकुल असहमत रहा। अन्य प्रतिनिधियों का कहना है कि G-20 स्टील, पर्यावरण और व्यापार के मुद्दों से परे ही रहा। प्रक्रिया में शामिल एक व्यक्ति ने बतया कि इन मुद्दों पर समझौता करने की क्षमता लगभग शून्य हो गई थी और कोई भी वास्तव में बातचीत ही नहीं करना चाहता था। यहाँ तक की इस G-20 समिट प्रक्रिया में शामिल एक अमेरिकी अधिकारी ने अंतिम विज्ञप्ति को बस समय की बर्बादी कहा।
जब इन सब एक तरफ़ा फैसलों पर विचार किया जाये, तो लगता है की विश्व के समस्त शेयर बाजारों में भारी मंदी जल्द ही आने वाली है क्यूंकि जहाँ एक ओर इंटरनेशनल मॉनेटरी फण्ड पहले ही उन सभी अंतराष्टीय मुद्दों पर जारी अनदेखी के कारण विश्व में आने वाली आर्थिक मंदी पर आपत्ति जता चुका है। इसमें कोई शक नहीं की 1 जुलाई को जब विश्व के सभी शेयर बाजार एक गैप-डाउन के साथ यदि खुलते हैं तो इस बात की पुष्टि हो जाएगी कि G - 20 समिट में इस तरह के एक तरफ़ा फसलों का क्या प्रभाव पड़ता है।
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