iGrain India - पुणे । महाराष्ट्र के मराठवाड़ा एवं विदर्भ संभाग में सोयाबीन एवं कपास के उत्पादकों पर दोहरी मार पड़ रही है। एक तो फसल के उत्पादन में गिरावट आने की संभावना है और दूसरे, इसका बाजार भाव भी नीचे चल रहा है।
ज्ञात हो कि सोयाबीन एवं कपास वहां की दो मुख्य फसलें हैं। इतना ही नहीं बल्कि रबी सीजन में अच्छी फसल होने की संभावना भी धूमिल पड़ गई है क्योंकि वहां खेतों की मिटटी में नमी का अंश काफी घट गया है। मराठवाड़ा एवं विदर्भ संभाग के किसानों को लगातर दूसरे सीजन में भारी आर्थिक नुकसान होने का डर सता रहा है।
अकोला में कपास फसल की तुड़ाई-तैयारी आमतौर पर 4-5 चरणों में होती है जबकि इस बार दो चरणों में ही समाप्त हो जायेगी। अगस्त के रिकॉर्ड शुष्क गर्म मौसम ने कपास तथा सोयाबीन की फसल को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया।
अकोला में कपास की औसत उपज दर घटकर पिछले 12 साल के न्यूनतम स्तर पर सिमट जाने की संभावना है। सोयाबीन की उत्पादकता में भी भारी गिरावट आने की आशंका है।
पिछले साल वहां इसकी औसत उपज दर 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ दर्ज की गई थी जबकि चालू सीजन में यह घटकर 4-5 क्विंटल प्रति एकड़ रह जाने की संभावना है।
उत्पादकों का कहना है कि सिर्फ कमजोर उपज दर ही एक मात्रा समस्या नहीं है बल्कि खुला बाजार भाव भी दोनों फसलों का घटकर काफी नीचे आ गया है जिससे घाटा होने की आशंका बढ़ गई है।
सोयाबीन एवं कपास का थोक मंडी भाव फिलहाल सरकारी समर्थन मूल्य के आसपास चल रहा है। महाराष्ट्र की मंडियों में कपास का दाम 6900/7000 रुपए प्रति क्विंटल बताया जा रहा है जो न्यूनतम समर्थन मूल्य 6600 रुपए प्रति क्विंटल बताया जा रहा है जबकि इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4600 रुपए प्रति क्विंटल नियत है। सोयाबीन का भाव तो घटकर 2010-11 सीजन के करीब आ गया है जबकि इसके लागत खर्च में भारी इजाफा हो गया है।