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भारत में लाल मसूर की तुलना में हरी मसूर का आयात काफी ऊंचे दाम पर होने के संकेत

प्रकाशित 02/11/2023, 09:59 pm
भारत में लाल मसूर की तुलना में हरी मसूर का आयात काफी ऊंचे दाम पर होने के संकेत

iGrain India - वैंकुवर । कनाडा की सरकारी एजेंसी- स्टैट्स कैन का कहना है कि 2023-24 के वर्तमान मार्केटिंग सीजन (अगस्त-जुलाई) के आरंभ से ही लाल मसूर की तुलना में मोटी हरी मसूर का भाव औसतन 414 डॉलर (अमरीकी) प्रति टन ऊंचा चल रहा है और फिर भी भारतीय आयातकों द्वारा इसकी अच्छी खरीद की गई।

2022-23 के मार्केटिंग सीजन में दोनों संवर्ग की मसूर के दाम में औसतन 202 डॉलर प्रति टन का अंतर बना हुआ था जबकि चालू सीजन में यह दोगुने से भी ज्यादा ऊंचा हो गया। इसका प्रमुख कारण कनाडा में मोटी हरी मसूर के दाम में भारी इजाफा होना है।

सरकारी एजेंसी के अनुसार 27 अक्टूबर को कनाडा में मोटी हरी मसूर का भाव 65 सेंट प्रति पौंड एवं लाल मसूर का दाम 37 सेंट प्रति पौंड चल रहा था।

दरअसल पिछले दो वर्षों से भारत में तुवर का निराशाजनक उत्पादन होने से वहां मोटी हरी मसूर के प्रति आकर्षण बढ़ा है और आयातक कनाडा से ऊंचे दाम पर भी इसकी खरीद के लिए तैयार रहते हैं। ऑस्ट्रेलिया में मुख्यत: लाल मसूर का उत्पादन होता है इसलिए मोटी हरी मसूर के लिए भारतीय आयातकों के पास ज्यादा विकल्प नहीं रहता है। 

भारत सरकार ने चालू सीजन के दौरान तुवर का कुल उत्पादन 34.20 लाख टन होने का अनुमान लगाया है जो पिछले सीजन के अनुमानित उत्पादन 33.10 लाख टन से 1.10 लाख टन ज्यादा है।

यह दोनों ही आंकड़ा सामान्य औसत उत्पादन से करीब 10 लाख टन कम है। मुम्बई के व्यापारियों का कहना है कि तुवर का वास्तविक उत्पादन सरकारी अनुमान से काफी कम होगा।

आई ग्रेन इंडिया का मन्ना है कि वास्तविक उत्पादन 30 लाख टन से नीचे रह सकता है। कुछ अन्य समीक्षकों ने तो अरहर के उत्पादन में गत वर्ष के मुकाबले 25 प्रतिशत तक की गिरावट आने की आशंका व्यक्त की है।

समीक्षकों के अनुसार लगातार दूसरे साल भारत में तुवर का उत्पादन घटना आश्चर्यजनक है लेकिन इस हकीकत से इंकार नहीं किया जा सकता। मोटी एवं मध्यम आकार वाली हरी मसूर का उपयोग तुवर के विकल्प के रूप में किया जाता है।

भारत में खासकर तमिलनाडु में इसका प्रचलन ज्यादा है जहां नागरिक आपूर्ति निगम द्वारा इसकी मिलिंग करवाई जाती है और फिर खाद्य सहायता के तौर पर लोगों को इसकी दाल उपलब्ध करवाई जाती है।

जब भारत में तुवर का अभाव होता है और भाव काफी ऊंचा हो जाता है तब मोटी एवं मीडियम हरी मसूर की वार्षिक मांग बढ़कर 3 लाख टन तक पहुंच जाती है। इसके अलावा  महाराष्ट्र तथा केरल जैसे राज्यों में भी हरी मसूर की व्यावसायिक मांग बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं।

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