iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार फिलहाल गैर बासमती सफेद (कच्चा) चावल तथा गेहूं एवं इसके उत्पादों के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटाने के पक्ष में नहीं है लेकिन उसने इतना अवश्य कहा है कि स्टॉक की स्थिति एवं बाजार में प्रचलित कीमत नियमित रूप से आंकलन किया जाएगा और सही समय आने पर ही प्रतिबंध को वापस लेने का निर्णय लिया जाएगा।
मालूम हो कि मई - 2022 से गेहूं तथा जुलाई 2023 से कच्चे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा हुआ है। वैसे सरकारी स्तर पर इसके निर्यात पर कोई रोक-टोक नहीं है। सरकार द्वारा कई देशों को उसके विशेष आग्रह पर कच्चे चावल की आपूर्ति की जा रही है ताकि उसकी खाद्य सुरक्षा की जरूरत पूरी हो सके।
दरअसल गेहूं का खुला बाजार भाव सरकारी समर्थन मूल्य से काफी ऊंचा चल रहा है और प्रमुख मंडियों में इसकी आवक भी सीमित हो रही है। नई फसल के आने में कम से कम तीन चार माह की देर है और सरकार अपने बफर स्टॉक से भारी मात्रा में गेहूं बेचकर बाजार को स्थिर रखने का प्रयास कर रही है। ऐसी हालत में गेहूं का निर्यात खोलने के बारे में सोचना भी व्यावहारिक नहीं होगा। वैसे भी भारत गेहूं का नियमित निर्यातक देश नहीं रहा है।
जहां तक चावल का सवाल है तो जरूर भारत दुनिया में इसका सबसे बड़ा निर्यातक देश है लेकिन परिस्थितियां ऐसी हो गई कि सरकार को सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के लिए विवश होना पड़ा।
बेशक चालू खरीफ सीजन के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर धान के उत्पादन क्षेत्र में 6-7 लाख हेक्टेयर का इजाफा हुआ मगर मानसून एवं मौसम की हालत फसल के लिए अनुकूल नहीं रही।
इसके फलस्वरूप चावल के घरेलू उत्पादन में जोरदार गिरावट आने की आशंका पैदा हो गई। चावल का दाम जब बढ़ने लगा तब सरकार ने इसका निर्यात रोकने की घोषणा कर दी।
वैसे सेला चावल का निर्यात जारी है मगर इस पर 20 प्रतिशत का सीमा शुल्क लगा दिया गया है। सरकार अपने बफर स्टॉक से भी खुले बाजार में चावल उतार रही है। खरीफ उत्पादन की तस्वीर स्पष्ट होने के बाद भी कच्चे चावल के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटाए जाने की संभावना बहुत कम है।