iGrain India - नई दिल्ली । देश के पांच राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना एवं मिजोरम में विधानसभा चुनाव के लिए विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा धुआंधार प्रचार किया जा रहा है और लोक लुभावन वादे किए जा रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश और राजस्थान गेहूं उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है जबकि छत्तीसगढ़ और तेलंगाना धान-चावल उत्पादन के लिए जाना जाता है। वैसे मध्य प्रदेश में धान का उत्पादन भी बड़े पैमाने पर होता है।
मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में कांग्रेस तथा भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है जबकि तेलंगाना में टीआरएस से इन दोनों पार्टियों का टक्कर है।
भाजपा तथा कांग्रेस- दोनों ही धान-गेहूं का स्थानीय स्तर पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में भारी बढ़ोत्तरी की घोषणा कर चुकी है। इससे किसानों को तो आकर्षक आमदनी प्राप्त होगी मगर साथ ही साथ प्रांतों के राजकोष पर भारी दबाव भी पड़ेगा।
ध्यान देने की बात है कि केवल यही एक वादा नहीं है बल्कि समाज के अन्य वर्गों के कल्याण के लिए भी अनेक ऐसी योजनाओं की घोषणा की गई है जिस पर प्रांतीय सरकारों को भारी-भरकम धनराशि खर्च करनी पड़ेगी।
इसके परिणामस्वरूप अन्य विकास कार्यों के लिए धन का अभाव महसूस हो सकता है और राज्य की अर्थ व्यवस्था की प्रगति में बाधा पड़ सकती है।
राजनैतिक दलों को जनता की भलाई के लिए सम्यक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है। दरअसल सत्ता हथियाने के लिए आजमाए जा रहे ये हथकंडे भविष्य के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं।
यह सही है कि किसानों को धान तथा गेहूं का लाभप्रद मूल्य अवश्य मिलना चाहिए मगर इसे धीरे-धीरे आगे बढ़ाए जाने की जरूरत है। छत्तीसगढ़ में पांच साल पहले ही धान की खरीद के लिए राज्य सरकार ने किसानों को काफी ऊंचा मूल्य देने का वादा किया था जिसे अब तक निभाया जा रहा है।
अब इसे और भी बढ़ाने का वादा किया गया है। इससे दूसरे राज्यों के किसानों को भी अपनी सरकार पर खरीद मूल्य बढ़ाने के लिए दबाव डालने का प्रोत्साहन मिल सकता है।