iGrain India - नई दिल्ली । विदेशों से वनस्पति तेलों का कुल आयात 2022-23 के मार्केटिंग सीजन में तेजी से उछलकर 167.10 लाख टन के सर्वकालीन सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया।
स्वदेशी प्रभाग में खाद्य तेलों की बढ़ती उपलब्धता के कारण तिलहन-तेल का भाव नरम बना हुआ है जिसका प्रतिकूल प्रभाव तिलहन उत्पादकों की आमदनी पर पड़ने लगा है।
इससे तिलहन फसलों और खासकर सरसों की खेती के प्रति किसानों के उत्साह एवं आकर्षण में कमी आने की संभावना है। वैसे भी सोयाबीन एवं सरसों का भाव विभिन्न थोक मंडियों में सरकारी समर्थन मूल्य से नीचे चल रहा है।
सरसों रबी सीजन की सबसे प्रमुख तिलहन फसल है और स्वदेशी स्रोतों से देश के सर्वाधिक खाद्य तेल इसी तिलहन से प्राप्त होता है। यदि इसके उत्पादन में कमी आई तो विदेशों से खाद्य तेलों का आयात बढ़ाना आवश्यक हो जाएगा।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश के सबसे प्रमुख उत्पादक प्रान्त-राजस्थान में सरसों का उत्पादन क्षेत्र गत वर्ष के 35.75 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सरसों की बिजाई का लक्ष्य नियत किया है मगर यह लक्ष्य हासिल होना मुश्किल लगता है क्योंकि बिजाई की गति काफी धीमी पड़ गई है।
2022-23 के पूरे रबी सीजन के दौरान राजस्थान में कुल 45.52 लाख हेक्टेयर में सरसों की खेती हुई थी। इसी तरह गुजरात में सरसों का उत्पादन क्षेत्र पिछले साल के 2.47 लाख हेक्टेयर से घटकर इस बार 1.66 लाख हेक्टेयर रह गया है जो सामान्य औसत क्षेत्रफल 2.42 लाख हेक्टेयर से भी काफी कम है।
पश्चिम बंगाल एवं हरियाणा में भी सरसों का बिजाई क्षेत्र गत वर्ष से पीछे है अगर मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में कुछ बढ़ने की सूचना है। यह स्थिति सुखद नहीं मानी जा सकती है।
खाद्य तेल उद्योग क्षेत्र के दो अग्रणी संगठन- सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ तथा इवपा द्वारा सरकार से बार-बार रिफाइंड पामोलीन के आयात पर अंकुश लगाने तथा क्रूड एवं रिफाइंड खाद्य तेल के बीच आयात शुल्क का अंतर 35 प्रतिशत रखे जाने का आग्रह किया जा रहा है।