iGrain India - मंगलोर । सरकारी एजेंसी- कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) का कहना है कि फार्मर्स प्रोड्यूसर्स ऑर्गेनाइजेशन (एफपीओ) द्वारा पिछले कुछ वर्षों से काजू के उत्पादन, भंडारण, कारोबार एवं निर्यात क्षेत्र में अच्छी सक्रियता दिखाई जा रही और निर्यातक भी अपने स्तर से निर्यात संवर्धन के लिए प्रयास कर रहे हैं।
काजू निर्यात संवर्धन परिषद (सीईसीसी) काजू निर्यातकों का एक महत्वपूर्ण संगठन है लेकिन उसने निर्यात बढ़ाने की दिशा में उतना जोरदार प्रयास नहीं किया जितना उससे उम्मीद की जा रही थी।
यही कारण यही कारण है कि सरकार ने काजू निर्यात का दायित्व उससे वापस लेकर एपीडा को सौंप दिया। एपीडा के अनुसार आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा एवं गुजरात जैसे राज्यों से काजू के निर्यात संवर्धन की भारी गुंजाईश है और काजू की प्रोसेसिंग तथा मूल्य संवर्धित उत्पादों के निर्माण में प्रवेश के लिए अधिक से अधिक कंपनियों को प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है।
वियतनाम में करीब दो-दशक पूर्व ही अमरीका के सहयोग से काजू प्रोसेसिंग इकाइयों का आधुनिकीकरण शुरू हो गया था मगर भारत इसमें पीछे रह गया। अब यहां भी मशीनीकरण का दौर आरंभ हो चुका है। भारतीय काजू की क्वालिटी बहुत अच्छी होती है इसलिए इसका भाव ऊंचा रहता है।
मशीनीकरण से प्रसंस्कृत काजू के उत्पादन खर्च में कमी आ सकती है जिससे इसका निर्यात बढ़ाने में सहायता मिलेगी। एपीडा का इरादा सभी पक्षों के सहयोग से काजू का निर्यात तेजी से बढ़ाने का है।
भारत काजू के निर्यात में वियतनाम से काफी पिछड़ चुका है जबकि दो दशक पहले तक उससे काफी आगे चल रहा था। इस समयावधि के दौरान भारत के घरेलू प्रभाग में काजू की मांग एवं खपत कई गुना बढ़ गई इसलिए निर्यातकों ने भी विदेशों में अपना माल भेजने के बजाए घरेलू बाजार में ही उसे उतारना शुरू कर दिया क्योंकि यहां दाम भी आकर्षक स्तर पर चल रहा है।
एपीडा अब काजू का निर्यात बढ़ाने का हर संभव प्रयास करेगा। इसके लिए उसके एक महत्वपूर्ण कार्य योजना भी तैयार की है। वह काजू निर्यात बढ़ाने के लिए अनेक बाजारों में पैठ बढ़ाने की कोशिश करेगा जिसमें ऑस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया, ताईवान एवं यूरोपीय संघ के सदस्य देश भी शामिल हैं। संयुक्त अरब अमीरात, हॉलैंड एवं जापान पहले से ही भारतीय प्रसंस्कृत काजू की अच्छी खरीद कर रहे हैं।