iGrain India - पर्थ । ऑस्ट्रेलिया में केवल ग्रीष्मकाल के दौरान सीमित क्षेत्रफल में सोयाबीन की खेती होती है और इसका उत्पादन भी बहुत कम होता है। इसके फलस्वरूप वहां सोयामील एवं सोया आइसोलेट का प्रति वर्ष बड़े पैमाने पर आयात करने की आवश्यकता पड़ती है। सरकारी एजेंसी- अबारेस ने सोयाबीन का रकबा 21 हजार हेक्टेयर तथा उत्पादन 40 हजार टन होने का अनुमान लगाया है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1998-99 एवं 1999-2000 के दौरान ऑस्ट्रेलिया में करीब 50 हजार हेक्टेयर में सोयाबीन की खेती हुई थी और इसका उत्पादन एक लाख टन से ऊपर पहुंच गया था लेकिन उसके बाद से क्षेत्रफल एवं उत्पादन में गिरावट आने लगी।
अब केवल दक्षिणी न्यू साउथ वेल्स तथा क्वींसलैंड प्रान्त के सुदूर उत्तरी क्षेत्र में कुछ किसान इसकी खेती करते हैं जबकि अन्य किसानों ने दूसरी फसलों का उत्पादन शुरू कर दिया है।
क्वींसलैंड प्रान्त में सोयाबीन का बिजाई क्षेत्र 1989-90 में बढ़कर 33 हजार हेक्टेयर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था जो अब घटकर 6000 हेक्टेयर के आसपास रह गया है न्यू साउथ वेल्स प्रान्त में भी सोयाबीन क्षेत्रफल वर्ष 2012-13 में 36,600 हेक्टेयर के शीर्ष स्तर पर पहुंचा था।
दरअसल सोयाबीन के प्रमुख उत्पादक इलाकों में कपास की खेती को प्राथमिकता दी जाने लगी जिससे इस महत्वपूर्ण तिलहन का रकबा तेजी से घटने लगा।
लेकिन अब दोबारा इसका क्षेत्रफल एवं उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। सोया उद्योग ने अगले 10 साल में यानी वर्ष 2023 तक इसमें दोगुनी बढ़ोत्तरी करने का लक्ष्य रखा है।
हालांकि वैश्विक मानक के सापेक्ष ऑस्ट्रेलिया का सोयाबीन उद्योग बहुत छोटा है मगर यह अनेक कृषि तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। किसानों को इससे अच्छी आमदनी भी होती रही है।
ऑस्ट्रेलिया में पिछले एक दशक के दौरान सोयाबीन की अनेक नई किस्मों एवं प्रजातियों का विकास हुआ है जिससे इसके उत्पादन में अच्छी बढ़ोत्तरी होने की उम्मीद की जा रही है।
इन नई किस्मों की उपज दर ऊंची होती है और क्वालिटी बेहतर मानी जाती है क्योंकि इसमें प्रोटीन का ज्यादा अंश मौजूद रहता है। कुछ देशों को इसके बीज का निर्यात किए जाने की संभावना भी कम रही है।