iGrain India - मुक्तसर । पंजाब सहित अन्य प्रमुख उत्पादक राज्यों की मंडियों में कपास का भाव घटकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे आने लगा है जिससे सरकारी एजेंसी- भारतीय कपास निगम (सीसीआई) को इसकी खरीद करनी पड़ रही है। निगम द्वारा अब तक 900 करोड़ रुपए मूल्य की 2.50 लाख गांठ से अधिक रूई की खरीद की जा चुकी है।
पंजाब में स्थिति ज्यादा खराब बताई जा रही है। वहां कपास की मांग एवं कीमत कमजोर चल रही है। इस बार बिजाई क्षेत्र में कमी आई और फल की उपज दर नीचे रही। इससे किसानों की आमदनी में भारी गिरावट आ रही है जिसे देखते हुए अनेक उत्पादकों ने अगले सीजन में कपास की खेती छोड़ने का मन बना लिया है।
वैसे भी पंजाब में कपास का बिजाई क्षेत्र तेजी से घटता जा रहा है और उत्पादकों ने कहना शुरू कर दिया है कि कपास की खेती करना लाभदायक नहीं है।
मध्यम रेशेवाली कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य 6620 रुपए प्रति क्विंटल एवं लम्बे रेशे वाली किस्म का समर्थन मूल्य 7020 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है जबकि पंजाब की कुछ मंडियों में भाव घटकर 4700 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास आ गया है।
सितम्बर में जब वहां नई कपास की आवक शुरू हुई थी तब इसका भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से 300/500 रुपए प्रति क्विंटल ऊंचा चल रहा था। उल्लेखनीय है कि पंजाब में कपास की खेती मुख्यत: फाजिल्का, भटिंडा, मनसा एवं मुक्तसर जिलों में होती है जबकि फरीदकोट सहित अन्य चार जिलों में भी इसका थोड़ा- बहुत उत्पादन होता है।
पंजाब में कपास की फसल पर अक्सर पिंक बलवर्म कीट का घातक प्रकोप देखा जाता है। जिससे रूई की उपज दर एवं क्वालिटी प्रभावित होती है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी ज्यादा मांग नहीं रहती और किसानों को कम दाम मिलता है।
इसके फलस्वरूप वे अगले सीजन में दूसरी फसलों की तरफ आकर्षित हो सकते हैं। दिलचस्प तथ्य यह है कि पिछले साल तक कपास का दाम किसानों के लिए आकर्षक बना हुआ था जबकि उससे पिछले वर्ष तो यह नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था।
पिछले साल की तुलना में चालू सीजन के दौरान पंजाब में कपास की औसत उपज दर घटकर लगभग आधी रह गई है और इसका दाम भी 2000 रुपए प्रति क्विंटल घट गया है। बिनौला युक्त पशु आहार का कारोबार सुस्त हो गया है।
कीड़ों-रोगों के प्रकोप से बिनौला के संक्रमित होने से पशुओं ने इसे कहना लगभग छोड़ दिया है। कुछ पशु तो इसके सेवन से बीमार भी हो गए हैं। पंजाब में कपास का क्षेत्रफल गत वर्ष के 2.50 लाख हेक्टेयर से घटकर इस बार 1.75 लाख हेक्टेयर पर सिमट गया था।