iGrain India - नई दिल्ली । खरीफ कालीन फसलों- धान, गन्ना एवं कपास आदि की कटाई-तैयारी में देर होने के कारण गेहूं की बिजाई की धीमी गति को देखते हुए कृषि वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ने लगी है। करनाल (हरियाणा) स्थित- 'भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान ने कहा है कि जिन राज्यों के लिए गेहूं की जो किस्में सर्वाधिक उपयुक्त हैं वहां किसानों को अधिक से अधिक 25 दिसम्बर तक उसकी बिजाई अवश्य पूरी कर लेनी चाहिए अन्यथा उसकी उपज दर में गिरावट की आशंका बनी रहेगी।
केन्द्र सरकार ने इसके लिए कुछ कदम उठाए हैं। उसने राष्ट्रीय स्तर पर गेहूं के 60 प्रतिशत उत्पादन क्षेत्र में ऐसी किस्मों / प्रजातियों की खेती का लक्ष्य नियत किया है जो प्रतिकूल मौसम की प्रतिरोधी क्षमता से युक्त है। इस बार अल नीनो की वजह से फसल की प्रगति के चरण में मौसम आमतौर पर शुष्क एवं गर्म रहने का अनुमान लगाया जा रहा है।
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक पंजाब- हरियाणा सहित कुछ अन्य राज्यों में गेहूं की बोआई का आदर्श समय बीत चुका है और अन्य प्रांतों में लेट वैरायटी वाले गेहूं की बिजाई हो रही है। इसकी परिपक्वता अवधि छोटी और उपज दर कम होती है। लेकिन इसकी बिजाई भी 25 दिसम्बर तक करना आवश्यक है।
इससे फसल को मैच्योर होने का पूरा समय मिल सकता है और उसमें दाना लगने तथा उसके पुष्ट होने में समस्या नहीं आएगी। 25 दिसम्बर के बाद होने वाली बिजाई की फसल को मार्च-अप्रैल के दौरान या उसके बाद ऊंचे तापमान का सामना करना पड़ सकता है।
संस्थान ने पंजाब- हरियाणा के मैदानी इलाकों, राजस्थान के कुछ भागों तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए गेहूं की कुछ खास किस्मों की बिजाई का सुझाव दिया है। इसी तरह पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल एवं झारखंड के लिए खास प्रजातियों की गेहूं की खेती करने की सलाह किसानों को दी गई है।
उधर मध्य प्रदेश, गुजरात एवं राजस्थान के किसानों को अलग किस्मों के गेहूं की खेती करने का सुझव दिया गया है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जिन राज्यों के लिए जिन-जिन प्रजातियों के गेहूं की खेती की सिफारिश की गई है उसकी बिजाई वहां कहीं भी की जा सकती है लेकिन बिजाई की अवधि 25 दिसम्बर से आगे न बढ़े तो अच्छा है।