iGrain India - अहमदाबाद । मंडियों में आपूर्ति सामान्य होने तथा मांग कमजोर रहने से कपास का घरेलू बाजार भाव घटकर पिछले दो वर्षों के निचले स्तर पर आ गया है। पश्चिमी देशों और खासकर अमरीका तथा इंग्लैंड में आर्थिक मंदी के कारण कॉटन उत्पादों की मांग प्रभावित हो रही है जिससे भारतीय मिलों में रूई की खपत बढ़ नहीं रही है।
व्यापार विश्लेषकों के मुताबिक उत्पादन में गिरावट की आशंका के बावजूद मंडियों में कपास की नगण्य मांग देखी जा रही है। पिछले सीजन के बकाया स्टॉक के साथ चालू सीजन में रूई की कुल उपलब्धता कम रहेगी।
इसका घरेलू उत्पादन 300 लाख गांठ के आसपास होने का अनुमान लगाया जा रहा है। पश्चिमी देशों में वस्त्र एवं इसके उत्पादों की मांग सुस्त पड़ गई है। इसके फलस्वरूप कॉटन मिलों की सक्रियता कम हो गई हैं। हालांकि किसान 7000 रुपए प्रति क्विंटल के निचले मूल्य पर कपास की बिक्री के लिए तैयार हैं मगर मिलर्स इसकी खरीद में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं।
राजकोट के एक व्यापारी का कहना है कि मिलर्स को अभी कपास की खरीद पर 'पड़ता' नहीं बैठ रहा है। कीमतों में नरमी को देखते हुए उत्पादकों ने मंडियों में अपना स्टॉक उतारना कम कर दिया है। स्पिनिंग मिलें कपास की खरीद में रूचि नहीं दिखा रही हैं जिससे किसानों के लिए संकट बढ़ता जा रहा है।
बिनौला (कॉटन सीड) का दाम घटकर 3000 रूपए प्रति क्विंटल से नीचे आ गया है जबकि अच्छी तरह धूनी हुई (जिन्द) रूई का भाव गिरकर 55,000-56,000 रुपए प्रति कैंडी (356 किलो) पर आ गया है। कर्नाटक की मंडियों में भी कपास की कीमतों में भारी गिरावट देखी जा रही है।
कपास का भाव घटकर अब 7200-7300 रुपए प्रति क्विंटल पर आ गया है जबकि कहीं-कहीं यह न्यूनतम समर्थन मूल्य (7020 रुपए प्रति क्विंटल) के आसपास चल रहा है। यह मूल्य पिछले दो सीजन में प्रचलित भाव से नीचे है।
वर्तमान समय में निर्यात के लिए बेंचमार्क मानी जाने वाली शंकर- 6 किस्म की कपास का दाम राजकोट (गुजरात) में 54,850 रुपए प्रति कैंडी पर आ गया है जबकि राजकोट की कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) की मंडी में इसका दाम 7100 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास चल रहा है। न्यूयार्क एक्सचेंज में भी रूई का वायदा भाव घटकर 78.25 सेंट प्रति पौंड (51,600 रुपए प्रति कैंडी) पर आ गया है।