iGrain India - मुम्बई । सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले एक दशक के दौरान देश में अनेक कृषि जिंसों का उत्पादन उछलकर नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया लेकिन कुछ उत्पादों के आयात पर निर्भरत में कमी आने के बजाए बढ़ोत्तरी दर्ज की गई।
इसमें दलहन एवं खाद्य तेल मुख्य रूप से शामिल है। इसका कारण घरेलू प्रभाग में दोनों एवं खाद्य तेलों की मांग तथा खपत में भारी बढ़ोत्तरी होना माना जा रहा है।
वर्ष 2023 में दक्षिण-पश्चिम मानसून की हालत अनिश्चित तथा अनियमित रही। अगस्त और अक्टूबर के शुष्क तथा गर्म मौसम ने अनेक खरीफ फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया जिसमें तुवर, उड़द एवं मूंग की फसल विशेष रूप से शामिल है।
इसी तरह सोयाबीन एवं मूंगफली का उत्पादन भी आंशिक रूप से प्रभावित हुआ। धान का उत्पादन घटने की संभावना को देखते हुए सरकार को गैर बासमती सफेद चावल के निर्यात पर पूर्ण (व्यापारिक) प्रतिबंध तथा सेला चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत का सीमा शुल्क लगाना पड़ा। प्रतिकुल मौसम के कारण गन्ना / कपास के उत्पादन में भी गिरावट आने की संभावना है। सरकार ने चीनी का निर्यात रोक रखा है।
2022-23 के मार्केटिंग सीजन (नवम्बर-अक्टूबर) के दौरान देश में खाद्य तेलों का आयात तेजी से बढ़कर 164.66 लाख टन के सर्वकालीन सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया जबकि दलहनों के आयात में भी अच्छी बढ़ोत्तरी हो रही है।
गेहूं तथा इसके उत्पादों, दाल-दलहन, चीनी तथा चावल का बाजार भाव काफी ऊंचा चल रहा है जिससे आम उपभोक्ताओं के साथ-साथ सरकार की चिंता भी बढ़ गई है।
सरकार नए-नए उपायों एवं नीतिगत निर्णयों के सहारे खाद्य महंगाई को नियंत्रित करने का पुरजोर प्रयास कर रही है मगर इसका अपेक्षित सार्थक परिणाम सामने नहीं आ रहा है।