iGrain India - नई दिल्ली । अर्थशास्त्र का यह सामान्य नियम है कि उत्पादन में बढ़ोत्तरी के साथ भाव घटता है लेकिन पिछले दो वर्षों से यह नियम विपरीत दिशा में जाता दिख रहा है।
एक तरफ सरकार बार-बार कृषि एवं खाद्य उत्पादों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी होने का दावा कर रही है तो दूसरी ओर घरेलू बाजार में इसका भाव ऊंचा एवं तेज चल रहा है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सरकारी नीतियों में जल्दी-जल्दी होने वाला बदलाव इसका मुख्य कारण है। दरअसल पहले सरकार की नीति किसान हितैषी थी जिसके कारण देश से असिमिति मात्रा में कृषि एवं खाद्य उत्पादों के निर्यात की अनुमति दी गई। इससे घरेलू बाजार में इन उत्पादों का भाव बढ़ा और किसानों को आकर्षक आमदनी प्राप्त हुई।
लेकिन जब उपभोक्ताओं की कठिनाई बढ़ने लगी तब सरकार की नीति भी बदल कर उपभोक्ता हितैषी हो गई और इसके साथ ही विभिन्न खाद्य उत्पादों के निर्यात को नियंत्रित करने का जोरदार प्रयास आरंभ हो गया।
मौजूदा केन्द्र सरकार के प्रथम शासनकाल (2014-2018) में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीसीआई) का सामान्य औसत स्तर 4.3 प्रतिशत था जो दूसरे कार्यकाल (जून 2019-नवम्बर 2023) में बढ़कर 5.8 प्रतिशत हो गया।
प्रथम कार्यकाल के दौरान उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक तो महक 3.3 प्रतिशत ही रहा था। क्योंकि इस समय सरकार का ध्यान घरेलू प्रभाग में आवश्यक खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने तथा कीमतों को नियंत्रित करने पर केन्द्रित था।
सरकार ने खाद्यान्न सहित अन्य कृषि जिंसों का उत्पादन बढ़ाने पर भी विशेष जोर दिया। लेकिन दूसरे कार्यकाल में हालत संतोषजनक नहीं रही और उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक लगभग दोगुना बढ़कर 6.4 प्रतिशत पर पहुंच गया।
खाद्य महंगाई का उछलता ग्राफ अब सरकार के लिए चिंता का गंभीर विषय बन गया है। हालांकि गेहूं, आटा, चीनी, टुकड़ी चावल एवं गैर बासमती सफेद चावल के निर्यात पर पहले ही प्रतिबंध लगाया जा चुका है और विदेशों से दलहनों के आयात का प्रोत्साहित करने के लिए भी तरह-तरह के कदम उठाए जा रहे हैं लेकिन फिर भी खुदरा बाजार में इन सभी उत्पादों का भाव काफी ऊंचे स्तर पर चल रहा है।
केवल खाद्य तेलों का दाम एक निश्चित सीमा में स्थिर बना हुआ है। सरकार अप्रैल-मई में लोकसभा के लिए आम चुनाव होने से पूर्व खाद्य महंगाई को नियंत्रित करने का हर संभव प्रयास कर रही है लेकिन अभी तक इसका अपेक्षित सार्थक परिणाम सामने नहीं आया है।