iGrain India - ब्रसेल्स । यूरोपीय संघ ने अपने सदस्य देशों में चावल उद्योग के हितों की रक्षा के लिए नियमों की एक श्रृंखला लागू कर दी है जिससे वहां भारतीय बासमती चावल का निर्यात प्रभावित होने की आशंका है।
ध्यान देने की बात है कि यूरोपीय संघ एक तरफ भारत के साथ एक मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) पर हस्ताक्षर करने के लिए बातचीत कर रहा है जबकि दूसरी ओर बासमती चावल के आयात को नियंत्रित करने के लिए तरह-तरह की बाधा भी उत्पन्न कर रहा है।
नए नियम-कानून का क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए यूरोपीय आयोग (ई सी) ने एक अधिसूचना भी जारी कर दी है।
एक अग्रणी विश्लेषक के अनुसार भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता पर हस्ताक्षर करने हेतु बातचीत करने के साथ-साथ यूरोपीय संघ भारतीय बासमती चावल के लिए एक भौगोलिक संकेतक (जी आई) टैग की तैयारी भी कर रहा है और ऐसे समय में उसे इस तरह का नियम-कानून लागू नहीं करना चाहिए था।
अगले चक्र की वार्ता के दौरान भारत को यूरोपीय संघ के सम्मुख यह मुद्दा उठाना पड़ेगा अन्यथा इसे भारी नुकसान हो सकता है और यूरोपीय संघ में भारतीय चावल का निर्यात बढ़ाने में काफी कठिनाई होगी।
यूरोपीय संघ के प्रस्तावों में बासमती चावल की मिलिंग एवं बिक्री के लिए नियमों-शर्तों में बदलाव, सिक्योरिटी डिपॉजिट में बढ़ोत्तरी, इलेक्ट्रॉनिक इनवायसिंग, ई-प्राधिकारिता एवं ऑन लाइन उपभोक्ता संरक्षण आदि शामिल हैं।
एक प्रस्ताव में तो किसी नए बासमती व्यापारी के लिए बाधा खड़ी कर दी गई है जो चावल कारोबार में दो वर्षों का अनुभव हासिल करने के बाद आयात लाइसेंस प्राप्त करने में सक्षम हुए हैं।
यूरोपीय मिलर्स मुख्यत: हस्क वाले बासमती चावल का आयात करते हैं। पिछले दो दशकों से यूरोपीय चावल मिलिंग उद्योग तथा ब्रांडों की स्थिति काफी मजबूत हुई है।
नए नियम-कानून से यूरोपीय संघ के दो प्रमुख चावल कारोबारी फर्मों को भारी फायदा होने की उम्मीद है लेकिन भारत को इससे नुकसान होगा। भारत इसमें संशोधन-परिवर्तन की मांग कर सकता है।