iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) फसलों के सुरक्षित उपयोग के लिए प्रतिबद्ध है और इसके अनुरूप बेहतर तथा आधुनिक मूल्यांकन प्रणाली का सहारा लिया जा रहा है।
वर्ष 2002 में बीटी कॉटन के व्यावसायिक उत्पादन की अनुमति दी गई थी मगर उससे पूर्व सात वर्षों से अधिक समय तक उसके सुरक्षात्मक पहलुओं का गहन अध्ययन-आंकलन किया गया था।
उल्लेखनीय है कि जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती को अनुमोदित करने के पर्यावरण मंत्रालय के निर्णय को चुनौती देने हेतु सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिक दाखिल की गई थी। इस पर हो रही सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार ने यह प्रतिबद्धता दोहराई।
यह पहला अवसर है जब किसी जीएम खाद्य फसल के व्यावसायिक उत्पादन की अनुमति देने पर अदालत में मामला चल रहा है। बीटी कॉटन को मुख्यत: औद्योगिक या अखाद्य श्रेणी की फसल माना जाता है।
सुनवाई के तीसरे दिन केन्द्र सरकार ने अधिवक्ता ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि भारत में जेनेटिकली मोडिफाइड ऑर्गेनिज्म (जीएमओ) के रेग्युलेशन हेतु एक बेहतर एवं विकसित विनियामक फ्रेम वर्क मौजूद है और इसके उत्पादों की अच्छी तरह जांच-पड़ताल की जा सकती है।
बीटी कॉटन तथा बीटी बैगन के लिए जो अनुमति रिव्यू कमिटी ऑन जेनेटिक मैन्युलेशन (आरसीजीएम) और जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रैजल कमिटी (जिएक) द्वारा प्रदान की गई थी वह प्रक्रियाओं एवं दिशा निर्देशों की एक विस्तृत श्रृंखला पर आधारित थी।
उच्चतम न्यायालय ने इस बात के लिए जिएक के प्रति अप्रसन्नता व्यक्त की कि उसने अक्टूबर 2022 में जीएम सरसों वैरायटी को पर्यावरण में जारी करने का अपना निर्णय लेने से पूर्व कोर्ट द्वारा नियुक्त तकनीकी विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों पर ध्यान नहीं दिया।
इस समिति ने कुछ खास सुझाव दिए थे और एक सदस्य ने असहमत भी व्यक्त की थी। बहस के दौरान एक न्यायाधीश ने कहा कि यह ध्यान रखना आवश्यक है कि देश के लिए क्या अच्छा है।