iGrain India - नई दिल्ली । उद्योग-व्यापार क्षेत्र के विश्लेषकों का कहना है कि भारत में मौजूद समय में मक्का का जितना उत्पादन होता है वह खाद्य उद्देश्य, औद्योगिक जरूरत एवं निर्यात शिपमेंट के लिए लगभग पर्याप्त है और इसलिए घरेलू बाजार में मांग एवं आपूर्ति के बीच लगभग संतुलन की स्थिति रहने से कीमतों में अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव नहीं आता है।
लेकिन यदि किसी अन्य उद्देश्य में इसकी विशाल मात्रा का उपयोग शुरू किया गया तो अतिरिक्त मात्रा की जरूरत पड़ेगी और इसके लिए विदेशों से आयात करना आवश्यक होगा।
चूंकि सरकार एथनॉल निर्णय में मक्का के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करना चाहती है इसलिए अन्य खपतकर्ता क्षेत्रों के लिए कठिनाई स्वाभाविक रूप से बढ़ जाएगी।
भारत चावल और गेहूं के साथ-साथ मोटे अनाजों के उत्पादन में भी लगभग आत्मनिर्भर बना है। लेकिन सरकार मक्का को अगली बड़ी व्यावसायिक फसल के तौर पर देख रही है।
इसके घरेलू उत्पादन में जोरदार बढ़ोत्तरी करने का प्लान बनाया जा रहा है ताकि एथनॉल निर्णय में बड़े पैमाने पर उसका उपयोग सुनिश्चित किया जा सके और अन्य उद्योगों पर बोर्ड प्रतिकूल असर भी न पड़े।
पेट्रोल में मिश्रण के लिए विशाल मात्रा में एथनॉल की जरूरत है। सरकार ने अगले कुछ वर्षों में मक्का के घरेलू उत्पादन में 100 लाख टन की बढ़ोत्तरी करने का लक्ष्य रखा है।
खेत से ईंधन तक कार्यक्रम के जरिए किसानों को मक्का का अधिक से अधिक उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। कृषि वैज्ञानिकों को बेहतर बीज विकसित करने के लिए कहा गया है जबकि किसानों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाया जाएगा।
सरकार ने किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मक्का की खरीद करके उसे एथनॉल निर्माताओं को उपलब्ध करवाने की योजना बनाई है। इसके साथ-साथ मक्का की औसत उपज दर एवं पैदावार बढ़ाने का भी प्रयास जारी है। इसके लिए मक्का के बिजाई क्षेत्र में वृद्धि होगी।
केन्द्रीय कृषि सचिव के अनुसार मक्का का उत्पादन 2021-22 सीजन के 337 लाख टन से सुधरकर 2022-23 के सीजन में 347 लाख टन पर पहुंचा जबकि अगले पांच वर्षों में इसे 100 लाख टन से अधिक बढ़ाकर 450 लक्ष्य पर पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है।