iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्रीय उपभोक्ता मामले सचिव रोहित कुमार सिंह ने म्यांमार के दलहन और खासकर अरहर (तुवर) तथा उड़द के निर्यातकों को आगाह किया है कि वे भारत की मजबूती का अनुचित फायदा उठाने का प्रयास न करें और इसकी कीमतों में मनमानी बढ़ोत्तरी करने तथा माल का स्टॉक रोककर शिपमेंट की गति धीमी रखने की प्रवृत्ति से बचें।
केन्द्र सरकार वर्ष 2027 तक दलहनों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए जोरदार प्रयास कर रही है और तब तक वह आयात की जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी एक देश पर निर्भर नहीं रहना चाहती है।
सरकार यह भी नही चाहती है कि निर्यातकों- व्यापारियों का कोई समूह कीमतों के मोर्चे पर मनमानी करे। भारत के आयातकों तथा म्यांमार के निर्यातकों को दलहनों के दाम में अनावश्यक बढ़ोत्तरी करने के खिलाफ चेतावनी देते हुए उपभोक्ता मामले सचिव ने कहा कि सरकार दलहन और खासकर उड़द का आयात बढ़ाने के लिए अर्जेन्टीना एवं ब्राजील के साथ मिलकर काम कर रही है।
15 फरवरी को नई दिल्ली में ग्लोबल पल्स कॉन फेडरेशन (जीपीसी) द्वारा नैफेड के सहयोग से आयोजित तीन दिवसीय पल्सेस 2024 ग्लोबल कांफ्रेंस को सम्बोधित करते हुए रोहित कुमार सिंह ने कहा कि किसी एक आपूर्तिकर्ता देश पर निर्भरता से बचने के लिए सरकार ब्राजील तथा अर्जेन्टीना के साथ काम कर रही है। इससे भारत में दलहनों के आयात के लिए कुछ और विकल्प मौजूद रहेंगे।
भारत में वर्ष 2023 की पूरी अवधि (जनवरी-दिसम्बर) के दौरान करीब 31 लाख टन दलहन का आयात हुआ जिसमें मसूर का आयात किया गया। उड़द का आयात मुख्यत: म्यांमार से हुआ।
उपभोक्ता मामलात सचिव का कहना था कि म्यांमार एवं पूर्वी अफ्रीका के देश भारत की स्थिति का गलत फायदा उठाने का प्रयास कर रहे हैं इसलिए उन्हें उपयुक्त ठंग से आगाह किया जाता है कि वे ऐसी गतिविधियों से दूर रहें।
भारत के पास ऐसी हरकतों को नियंत्रित करने का तरीका मौजूद है। जब तक वे गतिविधियों से दूर रहें। भारत के पास ऐसी हरकतों को नियंत्रित करने का तरीका मौजूद है।
जब तक वे उचित लाभ के साथ कारोबार करेंगे तब तक भारत सरकार उसे सहयोग देती रहेगी लेकिन यदि निर्यातक खेल को बिगाड़ना चाहते हैं या अनुचित फायदा उठाने का प्रयास करते हैं तो सरकार उसके पीछे पड़ जाएगी।
सचिव महोदय के अनुसार भारत में करीब 280 लाख टन दलहन का उत्पादन होता है जबकि खपत की मात्रा भी इसके आसपास ही है। लेकिन उत्पादन एवं उपयोग के ढांचे में भिन्नता के कारण मांग एवं आपूर्ति में अंतर बन जाता है।
मसूर, तुवर एवं उड़द की खपत अधिक होने के कारण अंतर पैदा होता है। मौसम की प्रतिकूल स्थिति, आपूर्ति श्रृंखला में बाधा एवं विभिन्न भागों में उत्पन्न भूराजनैतिक तनाव के कारण पिछले दो वर्षों के दौरान भारत को चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
इसके बावजूद सरकार ने उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर दाल-दलहन की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने का प्रयास जारी रखा।