iGrain India - चंडीगढ़ । हालांकि केन्द्र सरकार ने पांच साल तक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर दलहन फसलों - अरहर (तुवर), उड़द एवं मसूर की खरीद करने का प्रस्ताव रखा लेकिन इससे खासकर पंजाब के किसान न तो उत्साहित हैं और न ही संतुष्ट।
पंजाब-हरियाणा के आंदोलन कारी किसानों ने सभी 23 फसलों की खरीद एमएसपी पर करने की गारंटी देने वाला कानून बनाने और उसे प्रभावी ढंग से लागू करने की मांग की है ताकि उसके लिए एक स्थायी व्यवस्था सुनिश्चित हो सके।
सरकारी प्रस्ताव को नामंजूर करने का एक कारण संभवतः यह है कि जिन तीन दलहनों की एमएसपी पर खरीद का प्रस्ताव रखा गया है उसका उत्पादन पंजाब-हरियाणा में बहुत कम या नगण्य होता है और इसलिए किसानों को ज्यादा लाभ नहीं होगा। वहां धान और गेहूं के उत्पादन को प्राथमिकता दी जाती है।
कृषक समुदाय एवं विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को दलहनों के साथ-साथ मक्का और कपास की उपज दर बढ़ाने का जोरदार प्रयास होगा क्योंकि धान पर किसानों की कुल आमदनी इन फसलों से बहुत अधिक होती है।
दलहनों का भाव घटता बढ़ता रहता है जो इसके उत्पादन पर निर्भर करता है। अब तक सरकारी खरीद भी सीमित होती रही है जबकि धान और गेहूं की विशाल खरीद की जाती है।
पंजाब तथा हरियाणा में किसानों को मक्का तथा कपास की तुलना में धान और गेहूं की खेती से बहुत ज्यादा लाभ होता है जबकि दलहनों की फसल काफी संवेदनशील होती हैं और यदि मौसम की खराबी तथा प्राकृतिक आपदाओं एवं कीड़ों-रोगों के प्रकोप से फसल को नुकसान होता है तो उत्पादकों को भारी नुकसान होने का खतरा रहता है।
किसानों को यह भी आशंका है कि पांच साल के बाद यदि समर्थन मूल्य पर खरीद की बाध्यता नहीं रही तो सरकार अपने दायित्व से पल्ला झाड़ सकती है और तब दलहन उत्पादकों को पुनः बाजार पर निर्भर रहना पड़ेगा पड़ेगा जहां कीमतों में अक्सर उतार-चढ़ाव आता रहता है।
यदि स्थायी एमएसपी की गारंटी मिले तो किसान दलहनों की तरफ आकर्षित होने के बारे में सोच सकते हैं। फिलहाल मामला पेचीदा बना हुआ है। चार दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन अभी तक कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आया है।
सरकार ने पांचवें चरण की वार्ता का प्रस्ताव दिया है लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि आंदोलन कारी किसान अपनी मांगों के साथ समझौता करने के लिए तैयार नहीं हैं।