iGrain India - नई दिल्ली । हालांकि 100 प्रतिशत टूटे चावल पर सितम्बर 2022 से तथा गैर बासमती चावल पर जुलाई 2023 से निर्यात प्रतिबंध लगा हुआ है और अगस्त 2023 से गैर बासमती सेला चावल को निर्यात पर 20 प्रतिशत का सीमा शुल्क भी लागू है जिससे चावल के निर्यात में काफी गिरावट आ गई है लेकिन घरेलू बाजार में चावल की कीमतों पर कोई खास असर नहीं देखा जा रहा है।
सरकार चावल की आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने तथा कीमतों को नियंत्रित करने का हर संभव प्रयास कर रही है। इसके तहत निर्यात नियंत्रण के अलावा खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत साप्ताहिक आधार पर चावल की नीलामी (बिक्री) की जा रही है मगर इसकी खरीद में व्यापारी एवं मिलर्स बहुत कम दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
अब सरकार ने अपनी अधिकृत एजेंसियों के माध्यम से 29 रुपए प्रति किलो के रियायती मूल्य पर भारत ब्रांड नाम से चावल की बिक्री आरंभ की है लेकिन यह योजना भी चावल के दाम को घटाने में अभी तक कारगर साबित नहीं हो पाई है।
6 फरवरी से भारत चावल की बिक्री आरंभ हुई थी और पिछले 18-19 दिनों में इसकी रफ्तार जोर नहीं पकड़ पाई जबकि उससे पूर्व भारत ब्रांड नाम के तहत चना दाल तथा गेहूं आटा की जो खुदरा बिक्री शुरू की गई थी उसमें सरकार को काफी अच्छी सफलता मिली थी और खुले बाजार में इसकी कीमतों में तेजी पर ब्रेक लग गया था।
व्यापार विश्लेषकों के अनुसार ब्रांड नाम वाले चावल तथा पीडीएस वाले चावल की क्वालिटी सामान होती है। देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग किस्मों के चावल को पसंद किया जाता है और लोगों की आदतों, खाद्य शैली तथा पसंद को बदलना आसान नहीं होता है।
वे सरकार चावल पर ज्यादा निर्भर नहीं रहते हैं। बाजार में तरह-तरह के चावल मिल जाते हैं। पीडीएस का चावल मुफ्त में लोगों को मिल रहा है तो वे इस क्वालिटी का चावल 29 रुपए प्रति किलो की दर से क्यों खरीदेंगे ?
जिस किस्म एवं श्रेणी का चावल लोगों को पसंद आता है उसकी बिक्री रियायती दाम पर होगी तब बाजार दक्षिण भारत में इसका भाव ऊंचा चल रहा है। अखिल भारतीय स्तर पर चावल का औसत भाव भड़कर 3880 रुपए प्रति विंटल पर पहुंच गया है जो गत वर्ष से 529.40 रुपए ज्यादा है।