iGrain India - नई दिल्ली । बासमती के लिए जीआई टैग प्राप्त करने हेतु पाकिस्तान ने यूरोपीय आयोग के पास जो आवेदन जमा किया है उसमें अनेक किया है उसमें अनेक विसंगतियां एवं खामियां मौजूद है। आयोग द्वारा प्रकाशित दस्तावेज है और भारत इसे स्वीकार नहीं कर सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान का आवेदन गलतियों से भरा पड़ा है और इससे भारत का पक्ष मजबूत होगा। महत्वपूर्ण तथा तथ्य यह है कि इस आवेदन में भारत की संप्रभुता पर सवाल खड़े किए गए है।
भारत से कुछ महत्वपूर्ण बासमती उत्पादन क्षेत्रों को पाकिस्तान ने अपने अधिकार क्षेत्र का हिस्सा बताया है। इससे यूरोपीय संघ को उसे स्वीकार करने में कठिनाई हो सकती है।
यदि उसके भारत पर दबाव बनाने के लिए पाकिस्तान के आवेदन को मंजूर करने का संकेत दिया तो द्विपक्षीय मुक्त व्यापार संधि को बातचीत प्रभावित हो सकती है।
ध्यान देने की बात है कि यूरोपीय आयोग के पास बासमती टैग के लिए भारतीय आवेदन जुलाई 2018 से ही लंबित है जिस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है जबकि पाकिस्तान के हाल में दिये गये आवेदन को प्रकाशित कर दिया गया है। इससे यूरोपीय आयोग की नियत एवं मंशा पर संदेह होना स्वाभाविक ही है। वैसे आयोग इसे आरंभिक चरण मान रहा है।
पाकिस्तान के आवेदन में बासमती के भारतीय उत्पादन क्षेत्र को छोटा करके दिखाया गया है, भारत द्वारा विकसित पूसा 1121 बासमती वैरायटी पर हितों का टकराव बताया गया है, पर्यावरणीय कारकों का जिक्र किया गया है और ऐतिहासिक मूल उद्गम तथा प्रतिष्ठा पर भी प्रश्न चिन्ह लगाया गया है।
एक अग्रणी विश्लेषक के अनुसार इस आवेदन में दिए गए कारकों से प्रतीत होता है कि पाकिस्तान बासमती टैग के मुद्दे को उलझाना चाहता है।
वह चाहता है कि भारत को यह टैग नहीं मिले लेकिन गौर से देखा जाए तो उसका पता बहुत कमजोर है और यदि यूरोपीय आयोग निरपेक्ष होकर स्थिति का आंकलन करे तो उसे भारत को जी आई टैग देने में कोई कठिनाई नहीं होगी।