iGrain India - मुम्बई । लाल सागर क्षेत्र में यमन के हूती विद्रोहियों तथा हिन्द महासागर में सोमालिया के समुद्री लुटेरों द्वारा व्यावसायिक (माल वाहक) जहाजों पर लगातार किए जा रहे
हमलों से चिंतित भारतीय निर्यातक अब खास करके यूरोप तथा उत्तरी एवं पूर्वी अफ्रीका के देशों के आयातकों के साथ किए गए करार एवं अनुबंधों को स्थगित या निरस्त करने के लिए अपने वकीलों से सलाह-मशविरा करने लगे हैं।
एक जानकार का कहना है कि निर्यातक फर्मों तथा शिपिंग कंपनियों द्वारा उन उपबंधों पर विचार किया जा रहा है जो टर्मिनेशन, स्थगन, सीमांकन तथा दायित्व तथा क्षति आदि के आधार पर करार का अनुबंध से बाहर निकलने में सहायक बन सकता है।
वे कंपनियां चाहती हैं कि अनुबंध स्थगित या कैंसिल होने की स्थिति में भी उनके हित सुरक्षित रहे और आयातकों के साथ सम्बन्ध में भी दरार न पड़े।
निर्यात शिपमेंट के क्रम में कोई क्षति होने, ढेरी होने, दावा किए जाने अथवा डिफॉल्ट होने पर उन्हें न्यूनतम दायित्व का निर्वाह करना पड़े और कोई गंभीर विचार उत्पन्न न हो।
दरअसल हूती विद्रोहियों एवं सोमालिया के समुद्री लुटेरों से लाल सागर तथा हिन्द महासागर का जलमार्ग व्यावसायिक जहाजों के आवागमन के काफी हद तक असुरक्षित हो गया है और इसलिए निर्यातक तथा शिपर्स इस रास्ते से माल अथवा जहाज भेजने से कतराने लगे हैं।
इसके विकल्प के तौर पर जो दूसरा रास्ता अपनाया जा रहा है वह काफी लम्बा है जिसमें समय और खर्च ज्यादा लगता हैं। अनुबंध या करार होते समय दस्तावेज में विषम परिस्थितियों में राहत देने के लिए कुछ विशेष कानून कानूनी प्रावधान किए जाते हैं ताकि दोनों पक्षों को कम से कम नुकसान हो सके।
भारतीय निर्यातक अब इन्हीं वैधानिक प्रावधानों का सहारा लेना चाहते हैं। आमतौर पर आयातकों को भी लाल सागर एवं हिन्द महासागर क्षेत्र के हालात की जानकारी है लेकिन फिर भी भारतीय निर्यातक अपनी ओर से पूरी तैयारी कर रहे हैं।