iGrain India - भटिंडा । गुलाबी सूंडी (पिंक बॉलवर्म) तथा सफेद मक्खी- जैसे कीटों- रोगों के लगातार तेजी से बढ़ते प्रकोप, बाजार भाव में आने वाले उतार चढ़ाव तथा ऊंचे लागत खर्च जैसे कारकों से चिंतित एवं परेशान उत्तरी राज्यों के किसानों चालू वर्ष के दौरान कपास की खेती में कम दिलचस्पी दिखा सकते हैं और इसके बदले में धान, मक्का एवं ग्वार जैसी फसलों के उत्पादन को प्रघमिकता दे सकते हैं। इन फसलों से उन्हें आकर्षक आमदनी मिलने की उम्मीद रहेगी।
उत्तरी क्षेत्र में पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान में कपास की व्यावसायिक खेती होती है 2022-23 सीजन की तुलना में 2023-24 सीजन के दौरान कपास का उत्पादन क्षेत्र पंजाब में 2.49 लाख हेक्टेयर से 32 प्रतिशत लुढ़ककर 1.69 लाख हेक्टेयर तथा राजस्थान में 8.15 हेक्टेयर से गिरकर 7.91 लाख हेक्टेयर पर सिमट गया मगर राजस्थान में यह 5.75 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 6.83 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया।
इन राज्यों में कपास की अगैती बिजाई होती है। लेकिन कॉटन बीज की खरीद करने में किसान इस बार जल्दबाजी नहीं दिखा रहे हैं। बीज कंपनियों का कहना है कि बिजाई की शुरुआत धीमी गति से हुई है इसलिए कुछ समय तक इंतजार करना पड़ेगा।
हालांकि कॉटन बीज के दाम में सरकार द्वारा इस बार सीमित बढ़ोत्तरी की गई है लेकिन किसान अन्य खतरों से चिंतित और असमंजस में हैं।
समीक्षकों का कहना है कि इन तीनों राज्यों में कपास का उत्पादन क्षेत्र पिछले साल के स्तर तक पहुंचान मुश्किल लगता है। पंजाब के किसानों में कपास की खेती के प्रति कोई खास उत्साह नहीं देखा जा रहा है।
हरियाणा तथा राजस्थान में भी बिजाई क्षेत्र कुछ घट सकता है। पिछले महीने रूई के घरेलू एवं वैश्विक बाजार मूल्य में थोड़ी तेजी आई थी जिससे किसानों को कुछ प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद की जा रही थी अगर अब दाम पुनः घट गया है।