iGrain India - नई दिल्ली । वित्त वर्ष 2016-17 में 66 लाख टन के सर्वकालीन सर्वोच्च स्तर पर पहुंचने के बाद दलहनों का आयात तेजी से घटने लगा था।
सरकार ने पीली मटर के आयात पर 50 प्रतिशत के सीमा शुल्क के साथ कुछ कठिन शर्तें थोप दी थी, देसी चना के आयात पर 60 प्रतिशत का सीमा शुल्क लगा दिया, तुवर, उड़द एवं मूंग के आयात के लिए वार्षिक कोटा प्रणाली लागू कर दी तथा मसूर एवं काबुली चना पर भी ऊंचे स्तर का आयात शुल्क लगा दिया। वर्ष 2022 में मूंग के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
इन उपायों के कारण दलहनों के आयात में भारी गिरावट आने लगी। इधर घरेलू उत्पादन में भी क्रमिक रूप से बढ़ोत्तरी होती रही। मगर साथ ही साथ दाल-दलहनों की घरेलू मांग एवं खपत भी बढ़ती रही।
इसका नतीजा यह हुआ कि देश में दाल-दलहनों की मांग एवं आपूर्ति के बीच अंतर बढ़ने लगा और विदेशों से इसका आयात बढ़ाने की आवश्यकता महसूस होने लगी।
इधर घरेलू प्रभाग में दाल-दलहन का भाव तेजी से बढ़ने लगा। इसे नियंत्रित करने के लिए सरकार ने मोजाम्बिक, मलावी एवं म्यांमार जैसे देशों से तुवर आयात के लिए पंचवर्षीय करार किया, तुवर एवं उड़द के आयात पर कोटा प्रणाली खत्म कर दी और मसूर के आयात को शुल्क मुक्त कर दिया।
जब इससे भी बात नहीं बनी और चना का भाव तेज होने लगा तब दिसम्बर 2023 में 6 वर्षों के लम्बे अंतराल के बाद पीली मटर के शुल्क युक्त एवं नियंत्रण युक्त आयात की अनुमति प्रदान की गई।
इससे दाल-दलहनों का भाव काफी हद तक स्थिर हो गया लेकिन इसका स्तर ऊंचा हो रहा। दलहनों का भाव घटाने के लिए सरकारी प्रयास अब भी जारी है।
लेकिन आयात पर बढ़ती निर्भरता देश के लिए लाभदायक नहीं है क्योंकि कई बार इसमें कुछ पेंच फंस जाते हैं। इसके बजाए यदि घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जाए तो न केवल किसानों की आमदनी बढ़ेगी और कीमतों में स्थिरता आएगी बल्कि विदेशी दलहनों के आयात को काफी हद तक घटाना संभव हो जाएगा।
इसके तहत खासकर तुवर एवं उड़द का उत्पादन बढ़ाना जरुरी है क्योंकि अक्सर इसका भाव काफी ऊंचा एवं तेज हो जाता है।