iGrain India - नई दिल्ली । ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट (चेंज) का असर कृषि क्षेत्र पर पड़ने के संकेत मिलने लगे हैं। उदाहरणस्वरूप इस वर्ष कई क्षेत्रों में किसानों एवं फसलों को बेमौसमी वर्षा आंधी-तूफान एवं हिमपात में देरी जैसी समस्या से जूझना पड़ा है।
रबी फसलों की बिजाई फलस्वरूप से अक्टूबर-नवम्बर में शुरू हो जाती है जबकि मार्च-अप्रैल में यह परिपक्व होती है। चूंकि इन फसलों का विकास वर्षा ऋतु के बाद होता है इसलिए उसे कैथल अवशिष्ट नमी की जरूरत पड़ती है और सिंचाई के लिए भी सीमित पानी की आवश्यकता पड़ती है।
दरअसल बारिश के सीजन में खेतों की मिटटी में स्वाभाविक रूप से नमी का अंश बढ़ जाता है और दिसम्बर-जनवरी म मौसम क्षेत्र होने से नमी जल्दी सूखती नहीं है। रबी सीजन के दौरान उत्तरी भारत में गेहूं, सरसों, चना, जौ, मसूर एवं मटर की खेती बड़े पैमाने पर होती है।
दिसम्बर तथा जनवरी के दौरान मुख्यत: पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता से बारिश होती जिससे रबी फसलों को फायदा होता है। लेकिन पिछले दो दशकों से देखा जा रहा है कि बारिश दिसम्बर-जनवरी के बजाए फरवरी और मार्च में अधिक होने लगी है।
इसके साथ-साथ तेज हवा या आंधी तूफान का प्रकोप भी रहता है जिससे परिवपक्व होती फसलों को क्षति पहुंचती है और इसके दाने की क्वालिटी प्रभावित होती है।
मौसम की इस विसंगति से प्रमुख रबी फसलों को नुकसान होता है। यह क्षति कमी कम जो कभी ज्यादा होती है और विभिन्न फसलों को अलग अलग स्तर से हानि होती है।
इस बार पहाड़ों पर बर्फबारी काफी देर से आरंभ हुई जबकि पश्चिमी विक्षोभ के कारण राजस्थान पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश के कुछ भागों में तेज हवा के परवाह के साथ बारिश हुई। लेकिन इससे फसलों को व्यापक स्तर पर नहीं बल्कि सीमित क्षेत्रों में क्षति हुई।
उत्तर प्रदेश के जिन जिलों में फसलों को ज्यादा नुकसान हुआ उसमें चित्रकूट बस्ती, जालौन, झाँसी तथा सहारनपुर आदि शामिल हैं।