iGrain India - अहमदाबाद । मंडियों में कपास की घटती आवक को देखते हुए जिनर्स सतर्क हो गए हैं और नीचे दाम पर अपनी रूई की बिक्री करने से हिचकने लगे हैं। उन्हें लगता है कि आगामी समय में रूई की घरेलू एवं निर्यात मांग बढ़ने पर कीमत तेज हो सकती है।
व्यापार विश्लेषकों का मानना है कि रूई का भाव मौजूदा स्तर पर स्थिर हो सकता है। कीमतों में आ रही नरमी के कारण रूई की आवक की गति धीमी पड़ गई है। पिछले सप्ताह तक रूई के दाम में नरमी का रुख बना हुआ था। उधर आईसीई में रूई के वायदा मूल्य में मामूली सुधार आया है।
पिछले महीने की तुलना में अब मंडियों में कपास की आवक घटकर करीब आधी रह गई है। दैनिक आधार पर अब 50 हजार गांठ (प्रत्येक गांठ 170 किलो की) से भी कम कपास की आपूर्ति हो रही है। 22 अप्रैल को महाराष्ट्र की मंडियों में 21,300 गांठ एवं गुजरात में 18,100 गांठ कपास की आपूर्ति हुई जबकि शेष आवक अन्य राज्यों में दर्ज की गई।
समीक्षकों के अनुसार जिनर्स नीचे दाल पर अपनी रूई का स्टॉक बेचने के लिए तैयार नहीं है जबकि दूसरी ओर खरीदार भी वर्तमान मूल्य स्तर पर इसकी खरीद करने में विशेष रूचि नहीं दिखा रहे है।
जलगांव (महाराष्ट्र) स्थित संस्था- खान देश जिन-प्रेस फैक्टरी ऑनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष का कहना है कि रूई का भाव फिलहाल 57,000 रुपए प्रति कैंडी (356 किलो) के आसपास चल रहा है और निकट भविष्य में इससे नीचे जाने की संभावना बहुत कम है।
आईसीई न्यूयार्क में जुलाई अनुबंध के लिए प्रचलित मूल्य को देखते हुए भारत में कारोबार करने वाली कंपनियों ने 22 अप्रैल को अपनी रूई के बिक्री मूल्य में 600-700 रुपए प्रति कैंडी की बढ़ोत्तरी कर दी।
आईसीई में जुलाई डिलीवरी के लिए रूई का वायदा भाव 82.58 सेंट प्रति पौंड से गिरकर 81.65 सेंट प्रति पौंड पर आ गया। इधर एमसीएक्स में 31 मई की डिलीवरी के लिए रूई का वायदा अनुबंध मूल्य 1.79 प्रतिशत पत्र 1040 रुपए की वृद्धि के साथ 59,000 रुपए प्रति कैंडी पर पहुंच गया।
दिलचस्प तथ्य यह है कि भारतीय कपास निगम ने अपनी रूई का दाम 1000 रुपए प्रति कैंडी घटा दिया और मिलर्स ने उससे 28,103 गांठ की खरीद कर ली।