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दलहनों एवं तिलहनों का घरेलू उत्पादन बढ़ाने के प्रति सरकार गंभीर

प्रकाशित 26/04/2024, 09:28 pm
दलहनों एवं तिलहनों का घरेलू उत्पादन बढ़ाने के प्रति सरकार गंभीर

iGrain India - नई दिल्ली । भारत पिछले अनेक वर्षों से दुनिया में दलहनों एवं खाद्य तेलों का सबसे प्रमुख आयातक देश बना हुआ है और और इसके आयात पर विशाल धनराशि (विदेशी मुद्रा) खर्च करने के लिए विवश हो रहा है।

सरकार इस आयात को घटाने या सीमित करने के लिए अपने ढंग से प्रयास कर रही है मगर उसमें उसे ज्यादा सफलता नहीं मिल रही है। निस्संदेह घरेलू उत्पादन में इजाफा करना दलहनों एवं खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता घटाने का सर्वोत्तम उपाय या विकल्प है और सरकार का ध्यान इस पर केन्द्रित भी है लेकिन वह प्रत्यक्ष रूप से आयात को नियंत्रित करने का ठोस प्रयास नहीं करना चाहती है। 

उदाहरणस्वरूप केन्द्र सरकार ने अरहर, उड़द एवं मसूर के आयात को शुल्क मुक्त कर दिया है और साथ ही साथ पांच छह साल से बंद पड़े पीली मटर के आयत द्वार को पूरी तरह खोल दिया है।

फिलहाल जून 2024 तक पीली मटर के शुल्क मुक्त एवं शर्त रहित आयात की अनुमति दी गई है लेकिन आवश्यकता पड़ने पर इसके आयात की समय सीमा को आगे बढ़ाने पर विचार किया जा सकता है। 

खाद्य तेलों का मामला भी कुछ इसी तरह का है। क्रूड श्रेणी के खाद्य तेलों पर आयात शुल्क को घटाकर 5.5 प्रतिशत का सीमा शुल्क लागू है। वैश्विक बाजार में खाद्य तेलों का भाव अपने शीर्ष स्तर से घटकर काफी नीचे आ गया है लेकिन फिर भी सरकार इस पर आयात शुल्क बढ़ाने के लिए तैयार नहीं है।

इसके फलस्वरूप सरसों, सोयाबीन एवं मूंगफली उत्पादकों को अपने उत्पाद का लाभप्रद एवं आकर्षक मूल्य प्राप्त करने के लिए भारी संघर्ष करना पड़ रहा है।

चालू रबी सीजन में सरसों का घरेलू उत्पादन उछलकर 120-122 लाख टन के सर्वकालीन सर्वोच्च स्तर पर पहुंच जाने का अनुमान है लेकिन किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर अपना माल बेचने के लिए विवश होना पड़ रहा है। 

अब सरकार ने बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में खरीफ कालीन दलहन फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए नई पहल की शुरुआत की है जिसके तहत किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उसके उत्पादों (तुवर, उड़द एवं मूंग) की खरीद का वादा किया गया है।

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