iGrain India - नई दिल्ली । पिछले साल दक्षिण-पश्चिम मानसून के सीजन में सामान्य से कम वर्षा होने तथा इसका वितरण भी असमान रहने से खाद्यान्न और खासकर खरीफ कालीन दलहनों के उत्पादन में भारी गिरावट आ गई और तदनुरूप कीमतों में तेजी देखी गई।
हालांकि सरकार ने आयात को प्रोत्साहित करके तथा घरेलू प्रभाग में कुछ बाध्यकारी नियंत्रणात्मक उपायों को लागू करके दलहनों की आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने और कीमतों को घटाने का प्रयास किया मगर इसमें उसे पर्याप्त सफलता नहीं मिल सकी।
भारत में खाद्य महंगाई की दर फरवरी के 8.7 प्रतिशत से मामूली घटकर मार्च में 8.5 प्रतिशत पर आई मगर फिर भी इसे काफी ऊंचा माना गया। खाद्य महंगाई का स्तर ऊंचा स्तर रखने में दाल-दलहन एवं सब्जियों का विशेष योगदान रहा।
सरकार ने दलहनों पर भंडारण सीमा लागू किया, इसका आरक्षित भंडार बढ़ाने का प्रयास किया और समय-समय पर स्टॉक को खुले बाजार में उतारना जारी रखा। तुवर एवं उड़द के साथ-साथ मसूर के शुल्क मुक्त आयात की अवधि बढ़ा दी और रियायती मूल्य पर भारत ब्रांड चना दाल की बिक्री आरंभ करवाई।
ब्राजील तथा अर्जेन्टीना जैसे देशों से दलहन आयात के लिए दीर्घ कालीन अनुबंधों के लिए बातचीत की जा रही है जबकि मोजाम्बिक, मलावी एवं म्यांमार से पंचर्षीय करार पहले ही हो चुके हैं।
ब्राजील से करीब 20 हजार टन उड़द के आयात के लिए बातचीत अंतिम चरण में पहुंच गई है जबकि तुवर आयात के लिए अर्जेन्टीना के साथ अंतिम दौर की बातचीत जारी है।
इस वर्ष देश में दक्षिण-पश्चिम मानसून के चार माह की अवधि में अच्छी वर्षा होने की संभावना व्यक्त की जा रही है जिससे तुवर एवं उड़द के बिजाई क्षेत्र में बढोत्तरी होने की उम्मीद है।
मौसम एवं मानसून की अनुकूल स्थिति के सहारे यदि उत्पादन में इजाफा होता है तो दाल-दलहन का भाव कुछ नीचे आ सकता है।