iGrain India - पटना । बिहार के लिए के संगठित दलहन बाजार का निर्माण करना तथा दाल-दलहनों की खपत बढ़ाना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि पोषण सुरक्षा सूचकांक में यह राज्य काफी निचले स्तर पर है।
हालांकि वहां इसके लिए संस्थागत प्रयास हो रहे हैं लेकिन कृषि एवं पोषण विकास का एकीकरण अभी तक संभव नहीं हो पाया है।
इससे आयरन, जिंक एवं अन्य संवर्धित सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी बनी हुई है और बच्चों तथा महिलाओं में कुपोषण की दर बढ़ती जा रही है। पोषण आधारित आधार की मांग एवं जरूरत को पूरा करने के लिए दाल-दलहन की खपत बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।
वर्ष 2023 के लिए पोषण जागरूकता पर एक राज्य स्तरीय (बार) सूचकांक तैयार किया गया था जिसमें बिहार को निचले स्तर पर दिखाया गया था।
दूसरी ओर देश में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण की दृष्टि से यह देश के अग्रणी राज्यों में शामिल था। महिलाओं और बच्चों के अत्यधिक वजन के लिहाज से यह झारखंड के बाद दूसरे नम्बर पर था।
बिहार उन पांच शीर्ष राज्यों में शामिल है जहां खून की कमी वाले बच्चों एवं महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा है। पोषण विशेषज्ञों का कहना है कि दाल- दलहन, दूध और अंडा प्रोटीन के सबसे अच्छे स्रोत है और इसलिए इसकी खपत बढ़ाई जानी चाहिए।
दिलचस्प तथ्य यह है कि बिहार में प्रोटीन एवं कैलोरी की प्रति व्यक्ति दैनिक खपत राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है लेकिन वर्ष 2004-05 से 2011-12 के दौरान यह खपत 2096 किलो कैलोरी से घटकर 2010 किलो कैलोरी पर आ गई थी और अब भी प्रति व्यक्ति प्रति दिन के लिए आवश्यक खपत 2155 किलो कैलोरी से काफी नीचे है।
वित्त वर्ष 2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार बिहार में दलहनों का वार्षिक उत्पादन 4 लाख टन से कम है और कुछ वर्षों से या तो स्थिर है या घट रहा है।
दूसरी ओर राज्य में दाल-दलहनों की खपत की जरूरत 9.75 लाख टन आंकी गई है। सरकारी एजेंसी- नैफेड द्वारा बिहार में पिछले दशक से ही दलहनों की खरीद रोकी जा चुकी है।
पिछले साल एजेंसी ने समेकित बाल विकास कार्यक्रम तथा मध्याह्न भोजन योजना में इस्तेमाल के लिए राज्य में 43 हजार टन दलहनों की खरीद का लक्ष्य निर्धारित किया था।