iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने चना का घरेलू उत्पादन 2022-23 की तुलना में करीब एक लाख टन घटकर 2023-24 के वर्तमान सीजन में 121.60 लाख टन रह जाने का अनुमान लगाया है लेकिन उद्योग-व्यापार क्षेत्र का मानना है कि वस्तविक उत्पादन 100 लाख टन से भी कम हुआ है।
फसल की कटाई-तैयारी पूरी हो चुकी है मगर अभी तक मंडियों में इसकी आपूर्ति का दबाव नहीं बन पाया है। मांग एवं आपूर्ति के बीच भारी अंतर रहने से चना का खुला बाजार भाव पहली बार बढ़ते हुए 7000 रुपए प्रति क्विंटल की मनोवैज्ञानिक सीमा को पार कर गया है।
इसके फलस्वरूप सरकारी एजेंसियों को बफर स्टॉक के लिए चना की खरीद करने में भारी कठिनाई हो रही है। देसी चना की आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने के लिए सरकार ने अक्टूबर 2024 तक इसके आयात को शुल्क मुक्त कर दिया है लेकिन निर्यातक देशों और खासकर ऑस्ट्रेलिया तथा तंजानिया में सीमित स्टॉक को देखते हुए सरकार के इस निर्णय का ज्यादा सकारात्मक असर पड़ने की संभावना नहीं है। चना का आयात धीमी गति से एवं कम मात्रा में हो सकता है।
चना का न्यूनतम समर्थन मूल्य इस बार 5440 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है जो पिछले साल के समर्थन मूल्य 5335 रुपए प्रति क्विंटल से 105 रुपए अधिक है।
इसके मुकाबले चना का थोक मंडी भाव 7200-7300 रुपए प्रति क्विंटल यानी लगभग 35 प्रतिशत ऊपर चल रहा है जो हैरानी की बात है। मार्च से मई के दौरान चना की आपूर्ति का पीक सीजन माना जाता है और इस अवधि में कीमत नीचे रहने की उम्मीद की जाती है।
लेकिन इस बार स्थिति पूरी तरह विपरीत है। न तो मंडियों में चना की आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ रही है और न ही कीमतों में नरमी का कोई संकेत मिल रहा है।
ध्यान देने की बात है कि चना का दाम घटाने के लिए सरकार ने पीली मटर के आयात को भी अक्टूबर तक शुल्क मुक्त कर दिया है और विदेशों से विशाल मात्रा में इसका आयात भी हुआ है अगर चना का दाम इससे बिल्कुल प्रभावित नहीं हुआ है।
सरकारी अधिकारियों ने संकेत दिया है कि कीमतों में नरमी नहीं आने की स्थिति में चना पर भंडारण सीमा लागू करने पर विचार किया जा सकता है।
लेकिन समीक्षकों का मानना है कि भंडारण सीमा ज्यादा लाभप्रद या कारगार साबित नहीं होगा क्योंकि चना का स्टॉक मिलर्स एवं व्यापारियों के पास नहीं बल्कि उत्पादकों के पास है।