iGrain India - नई दिल्ली । अगले महीने केन्द्र में गठित होने वाली नई सरकार द्वारा निकट भविष्य में गैर बासमती सेला चावल पर लागू 20 प्रतिशत के निर्यात शुल्क को हटाए जाने की संभावना नहीं है क्योंकि इसके घरेलू बाजार मूल्य में अपेक्षित गिरावट नहीं आई है।
सेला चावल पर लगे निर्यात शुल्क की वसूली से सरकार को अच्छा राजस्व प्राप्त हो रहा है और घरेलू परबहग में इसकी आपूर्ति एवं उपलब्धता की स्थिति को सुगम बनाने में मदद मिल रही है।
दरअसल 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लागू होने के बावजूद भारतीय सेला चावल का भाव अन्य निर्यातक देशों की तुलना में प्रतिस्पर्धी है और इसलिए अफ्रीकी देशों के पास इसकी खरीद के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।
सीमा शुल्क का आरंभिक उद्देश्य घरेलू बाजार में चावल की आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाना तथा कीमतों तेजी पर अंकुश लगाना था। पहले इस सीमा शुल्क के कारण सेला चावल का निर्यात प्रभावित होने की आशंका व्यक्त की जा रही थी लेकिन धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हो गई।
चूंकि भारत सरकार 100 प्रतिशत टूटे चावल तथा गैर बासमती सफेद (कच्चे) चावल के व्यापारिक निर्यात पर पहले ही प्रतिबंध लगा चुकी थी इसलिए सेला चावल ही आयातक देशों का एक मात्रा सहारा बन गया।
अब सरकार को अहसास हो रहा है कि सेला चावल पर लगे 20 प्रतिशत के निर्यात शुल्क से करोड़ो डॉलर का राजस्व प्राप्त हो रहा है जबकि घरेलू बाजार मूल्य भी इससे प्रभावित नहीं हो रहा है।
ऐसा प्रतीत होता है कि सेला चावल के निर्यात पर तो प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा मगर इस पर लागू निर्यात शुल्क को भी निकट भविष्य में नहीं हटाया जाएगा।
नई सरकार यथास्थिति बनाए रखने का प्रयास कर सकती है। हालांकि चावल का घरेलू उत्पादन कुल मिलाकर संतोषजनक रहा मगर इसके निर्यात को शुल्क मुक्त करने अथवा कच्चे चावल के निर्यात की अनुमति देने के लिए अभी समय को अनुकूल नहीं माना जा रहा है।