iGrain India - नई दिल्ली । हालांकि पिछले कुछ सप्ताहों से उद्योग- व्यापार क्षेत्र द्वारा विदेशों से गेहूं के आयात की आवश्यकता पर जोर दिया जा रहा है क्योंकि मंडियों में इसकी बहुत कम आवक हो रही है और खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं की दोबारा बिक्री शुरू नहीं की गई है।
लेकिन सरकार की ओर से किसी मुद्दे पर कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया गया है। हैरत की बात यह है कि केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने अपने तीसरे अग्रिम अनुमान में 2023-24 के रबी सीजन में गेहूं का घरेलू बढ़कर 1129 लाख टन के सर्वकालीन सर्वोच्च स्तर पर पहुंचने की संभावना व्यक्त की है जो दूसरे अग्रिम अनुमान के आंकड़े 1120.20 लाख टन तथा 2022-23 सीजन के समीक्षित उत्पादन 1105.56 लाख टन से काफी अधिक है।
अब सवाल उठता है कि यदि देश में 1129 लाख टन से अधिक गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है तो वह गया कहां ? सरकारी खरीद 264-265 लाख टन के बीच अटकी हुई है जो पिछले रबी मार्केटिंग सीजन की कुल खरीद 262 लाख टन से महज 2-3 लाख टन ज्यादा है।
जब मध्य प्रदेश और राजस्थान में किसानों से 2400 रुपए प्रति क्विंटल की दर से गेहूं खरीदा जा रहा है तो वहां किसान अपना उत्पाद बेचने से हिचक क्यों रहे हैं। क्या किसानों के पास इतनी मजबूत क्षमता है कि वह साढ़े आठ करोड़ टन से अधिक गेहूं का स्टॉक अपने पास लम्बे समय तक सुरक्षित रख सके।
केन्द्र में एक बार फिर भाजपा की अगुवाई में गठबंधन की नई सरकार बनने वाली है लेकिन पिछले दो कार्यकाल की तुलना में इस बार स्थिति भिन्न है। वर्ष 2024 एवं 2019 के आम चुनाव में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला था इसलिए सरकार पर सहयोगी दलों का कोई दबाव नहीं था।
इसके विपरीत 2024 के चुनाव में भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और इसलिए सरकार को सहयोगी दलों की बैसाखी का सहारा लेना पड़ेगा। यदि इन दलों का दबाव बढ़ा तो सरकार को गेहूं आयात पर सकारात्मक निर्णय लेने के लिए विवश होना पड़ सकता है। गेहूं पर अभी 40 प्रतिशत का आयात शुल्क लगा हुआ है।