iGrain India - नई दिल्ली । हाल ही में सम्पन्न हुए लोक सभा के चुनाव के परिणाम को खाद्य महंगाई ने भी आंशिक रूप से प्रभावित किया। जिस भाजपा को चुनाव में 370 से ज्यादा तथा एनडीए को 400 से अधिक सीटें मिलने का पक्का भरोसा था वह क्रमश: 240 एवं 293 293 सीटों पर सिमट गई।
दरअसल भाजपा का सारा ध्यान राम मंदिर, मुस्लिम आरक्षण, हिन्दू मुसलमान, पाकिस्तान, विपक्षी दलों की आलोचना एवं पुराने गड़े मुद्दों को उखाड़ने पर केन्द्रित रहा जबकि विपक्षी दल गरीबी, बेरोजगारी एवं महंगाई के मुद्दे पर सरकार की विफलता से आम लोगों को अवगत करवाते रहे जो सीधे सीधे सामान्य वर्ग के हितों से जुड़े मामले थे।
यह सही है कि केन्द्र सरकार ने खाद्य महंगाई को नियंत्रित करने के लिए निरन्तर जोरदार और सामयिक प्रयास किए लेकिन इसका कोई खास सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया।
चावल, दाल, आटा, चीनी, तेल एवं दूध जैसे रोजमर्रा के खाद्य उत्पादों का भाव काफी ऊंचे स्तर पर बरकरार रहा और फलों- सब्जियों के दाम में भी बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई।
सरकार ने मुफ्त में गरीबों को चावल, गेहूं तो दिया मगर दाल-तेल चीनी-नमक एवं अन्य खाद्य उत्पादों के अत्यंत ऊंचे दाम से आम लोगों का जीना दूभर हो गया।
इसके फलस्वरूप भाजपा की ओर से लोग विमुख होने लगे और लोक सभा के चुनाव में उसे कम समर्थन दिया। खाद्य महंगाई अब भी काफी ऊंचे स्तर पर चल रही है।