iGrain India - नई दिल्ली । सरकार के पास चावल का अधिशेष स्टॉक मौजूद है और वह इसे घटाने के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रही है।
इधर निर्यातक द्वारा सरकार से बार-बार कच्चे (सफेद) चावल के निर्यात की अनुमति देने तथा सेला चावल पर लगे 20 प्रतिशत के निर्यात शुल्क को हटाने का आग्रह किया जा रहा है मगर घरेलू बाजार भाव ऊंचा होने के कारण सरकार इस आग्रह को स्वीकार करने से हिचक रही है।
समझा जाता है कि 2024-25 के सीजन में सरकार के पास 170-180 लाख टन चावल का अधिशेष स्टॉक मौजूद रहेगा जिसे उपयोग में लाने के लिए सरकार ने विभिन्न सम्बद्ध पक्षों के साथ विचार-विमर्श करना आरंभ कर दिया है। सरकार का पहला लक्ष्य चावल के खुदरा बाजार मूल्य को नीचे लाना है।
सरकार इस अधिशेष स्टॉक के चावल की निकासी के लिए जिन विकल्पों पर विचार कर रही है उसमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत अतिरिक्त मात्रा का आवंटन करना,
खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के अंतर्गत साप्ताहिक ई-नीलामी को दोबारा चालू करना और सीधे राज्यों को इसकी बिक्री आरंभ करना आदि शामिल है।
14 जून को खाद्य मंत्रालय ने कुछ निर्यातकों एवं राइस मिलर्स के साथ मीटिंग करके विभिन्न विकल्पों पर इसकी राय जानने का प्रयास किया। इसमें निर्यातकों ने अपना पक्ष रखा।
जब राज्य सरकार 3100 रुपए प्रति क्विंटल की दर से धान खरीद रही है तब राइस मिलर्स से 3000/3500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से चावल की बिक्री करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है।
-भारती एग्री एप्प