iGrain India - भोपाल । उत्तर प्रदेश के बाद देश के दूसरे सबसे प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य- मध्य प्रदेश में चालू रबी मार्केटिंग सीजन के दौरान इस महत्वपूर्ण खाद्यान्न की सरकारी खरीद उम्मीद से ही नहीं बल्कि नियत लक्ष्य से भी बहुत कम हुई है।
इसके मुख्य रूप से दो कारण बताए जा रहे हैं। पहली बात तो यह है कि राज्य में गेहूं का उत्पादन आशानुरूप नहीं हुआ और दूसरा कारण यह है कि पहले राज्य में किसानों से 2700 रुपए प्रति क्विंटल की दर से गेहूं खरीदने का वादा किया गया था मगर जब खरीद का सीजन आरंभ हुआ तब गेहूं का मूल्य 2400 रुपए प्रति क्विंटल नियत किया गया।
इसमें 2275 रुपए प्रति क्विंटल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तथा 125 रुपए प्रति क्विंटल का अतिरिक्त बोनस शामिल था। वादे के अनुसार किसानों को मूल्य नहीं मिलने से उसमें निराशा बढ़ गई।
समझा जाता है कि इस वर्ष सरकारी एजेंसियों को गेहूं बेचने के लिए मध्य प्रदेश में 15.48 लाख से अधिक किसानों ने अपना रजिस्ट्रेशन करवाया था
लेकिन जब 2700 रुपए के वादे के मुकाबले केवल 2400 रुपए प्रति क्विंटल का मूल्य देने की घोषणा की गई तब लगभग 60 प्रतिशत पंजीकृत किसानों ने अपना इरादा बदल दिया और सरकार को अपना गेहूं बेचने का प्लान रद्द कर दिया।
केन्द्रीय खाद्य मंत्रालय ने चालू मार्केटिंग सीजन के लिए मध्य प्रदेश में 80 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया था लेकिन वास्तविक खरीद 50 लाख टन से भी पीछे महज 48 खाद्य टन पर सिमत गई।
इससे राष्ट्रीय स्तर पर भी गेहूं की सरकारी खरीद नियत लक्ष्य से काफी पीछे रह गई। हकीकत तो यह है कि देश के किसी भी राज्य में गेहूं की खरीद निर्धारित लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकी।
मध्य प्रदेश गत चार वर्षों से केन्द्रीय पूल में गेहूं का योगदान देने के मामले में पंजाब के बाद दूसरे नम्बर पर चल रहा था मगर इस बार हरियाणा से पीछे खिसककर तीसरे नम्बर पर आ गया।