iGrain India - नई दिल्ली । विशाल क्षेत्रफल एवं आबादी के कारण भारत को एक उप महाद्वीप माना जाता है। हालांकि चीन इन दोनों ही मोर्चे पर भारत से आगे रहा है मगर जहां तक और भारत चावल का सबसे प्रमुख निर्यातक देश और गेहूं, चीनी तथा मोटे अनाजों के उत्पादन में आत्मनिर्भर है वहीँ चीन में बड़े पैमाने पर इन खाद्य उत्पादों का आयात किया जाता है।
भारत में खरीफ सीजन के दौरान चावल (धान), अरहर, उड़द, मूंग, ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी, सोयाबीन, मूंगफली, कपास एवं गन्ना आदि का विशाल उत्पादन होता है लेकिन लेकिन दालों एवं खाद्य तेलों की घरेलू मांग तथा खपत ज्यादा होने से इसके आयात की आवश्यकता पड़ती है।
दुनिया में भारत खाद्य तेलों का और चीन तिलहनों (मुख्यत: सोयाबीन) का सबसे प्रमुख आयातक देश है। दलहनों के आयात में भारत पहले और चीन दूसरे नम्बर पर है।
पिछले साल अल नीनो मौसम चक्र के प्रभाव से भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की तीव्रता एवं गतिशीलता में बाधा पड़ने से देश के अनेक राज्यों में अगस्त माह के दौरान वर्षा का अभाव होने के कारण भयंकर सूखा पड़ गया था जिससे खरीफ फसलों के क्षेत्रफल और उत्पादन में काफी कमी आ गई।
जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग का असर भी खरीफ फसलों पर पड़ने की आशंका है। देश में आधा से अधिक खाद्यान्न तथा तिलहनों का उत्पादन खरीफ सीजन में होता है जबकि कपास और गन्ना जैसी व्यावसायिक फसलें पूरी तरह खरीफ सीजन में शामिल होती है।
मोटे अनाजों का अधिकांश सीजन में ही होता है इसलिए यह सीजन राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
चालू वर्ष के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून के सीजन (जून-सितम्बर) में देश के अन्दर अच्छी बारिश होने की उम्मीद है और दक्षिणी राज्यों में इसके स्पष्ट संकेत भी मिल रहे हैं वहां पिछले साल सूखे ने तांडव मचा दिया था।
लेकिन उत्तरी राज्यों में जो भयंकर गर्मी पड़ रही है उससे कृषि वैज्ञानिकों को चिंतित होना चाहिए। उत्तरी राज्यों में धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है और धान की फसल के लिए भारी वर्षा का होना आवश्यक है।
अभी सीजन की शुरुआत है लेकिन कृषि विशेषज्ञों और सरकार को जलवायु परिवर्तन के गंभीर खतरों से खरीफ फसलों को बचने के लिए तत्काल एहतियाती कदम उठाना आवश्यक है।