iGrain India - नई दिल्ली । रबी सीजन की सबसे प्रमुख तिलहन फसल- सरसों का औसत बाजार भाव 22 से 28 अप्रैल 2024 वाले सप्ताह के दौरान 4800 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा था जो 2023-24 सीजन के दौरान नियत न्यूनतम समर्थन मूल्य 5650 रुपए प्रति क्विंटल है काफी नीचे था।
यह किसी एक राज्य का मामला नहीं है बल्कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा एवं गुजरात सहित सभी उत्पादक प्रांतों की बात है।
उल्लेखनीय है कि फरवरी 2024 में केन्द्रीय कृषि मंत्री ने चालू रबी मार्केटिंग सीजन के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर 28.20 लाख टन सरसों खरीदने की घोषणा की थी।
उस समय देश में करीब 130 लाख टन सरसों के उत्पादन का अनुमान लगाया गया था। लेकिन हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों को छोड़कर अन्य कहीं भी सरसों की सरकारी खरीद बड़े पैमाने पर शुरू नहीं हो सकी।
ध्यान देने की बात है कि पिछले साला सरसों का समर्थन मूल्य 5450 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया था जबकि अप्रैल में इसका औसत थोक मंडी भाव 4500 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास चल रहा था।
मार्च से मई तक नई सरसों की आपूर्ति का पीक सीजन रहता है। ज्ञात हो कि अप्रैल 2022 में सरसों का दाम 6700 रुपए प्रति क्विंटल की ऊंचाई पर पहुंच गया था।
हरियाणा में पिछले कुछ वर्षों से सरसों की सरकारी खरीद हो रही है मगर खरीद की स्म कुल उत्पादन के 25 प्रतिशत तक ही रहती है। अन्य प्रांतों में अनियमित खरीद होती है।
हालांकि मई के दूसरे पखवाड़े से नैफेड ने सरसों की खरीद में सक्रियता दिखाई जिससे इस महत्वपूर्ण तिलहन का दाम अधिकांश प्रमुख मंडियों में बढ़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य के आसपास और कहीं-कहीं उससे ऊपर पहुंच गया। लेकिन कीमतों के समर्थन मूल्य से ऊपर पहुंचते ही सरसों की सरकारी खरीद बंद हो गई।
जानकारों का कहना है कि किसानों को हर हाल में सरसों का समर्थन मूल्य प्राप्त होना चाहिए अन्यथा इसका खेती के प्रति उसका उत्साह एवं आकर्षण घट सकता है जो खाद्य तेल-तिलहन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के सरकारी प्रयास के लिए घातक साबित होगा।