iGrain India - नई दिल्ली । समझा जाता है कि कम से कम तीन कारणों से इस बार कपास के उत्पादन क्षेत्र में कमी आ सकती है। पहली बात तो यह है कि उत्तरी राज्यों में कीड़ों - रोगों के घातक प्रकोप से फसल को होने वाले भयंकर क्षति के कारण कपास के उत्पादन के प्रति किसान का उत्साह-आकर्षण काफी घट गया है।
रूई के वैश्विक बाजार मूल्य में नरमी का माहौल देखा जा रहा है और घरेलू प्रभाग में भी इसका दाम अपने शीर्ष स्तर से घटकर काफी नीचे आ गया है।
गुजरात, महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश जैसे शीर्ष उत्पादक राज्यों के कुछ भागों में किसान कपास की खेती के बजाए सोयाबीन, तुवर एवं मक्का आदि की बिजाई को प्राथमिकता दे सकते हैं।
हालांकि केन्द्र सरकार ने कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य 7.6 प्रतिशत बढ़ाकर 7121 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया है मगर इससे किसानों की दिलचस्पी बढ़ने में संदेह है। दक्षिणी भारत के कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश में रकबा कुछ घटने की संभावना है जबकि तेलंगाना में क्षेत्रफल कुछ बढ़ सकता है।
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार पिछले साल राष्ट्रीय स्तर पर कपास का उत्पादन क्षेत्र 124.69 लाख हेक्टेयर पर पहुंचा था जबकि चालू वर्ष के दौरान इसमें गिरावट आने की संभावना है।
उत्तरी भारत में बिजाई की प्रक्रिया लगभग समाप्त हो चुकी है और इसके क्षेत्रफल में भारी गिरावट दर्ज की गई। पंजाब-हरियाणा में किसान कीड़ों-रोगों की वजह से परेशान है जबकि लागत खर्च भी बढ़ता जा रहा है। राजस्थान, हरियाणा एवं पंजाब में कपास के बिजाई क्षेत्र में 40 से 60 प्रतिशत तक की जोरदार गिरावट आने की आशंका है।
सबसे प्रमुख उत्पादक प्रान्त- गुजरात में इस वर्ष कपास के बिजाई क्षेत्र में 10-15 प्रतिशत की गिरावट आने की संभावना है। राज्य के जिन भागों में बारिश हो रही है या हुई है वहां किसान कपास के बजाए मूंगफली सहित अन्य फसलों की खेती पर जोर दे रहे हैं।
देश में कपास का सर्वाधिक क्षेत्रफल महाराष्ट्र में रहता है लेकिन वहां भी स्थिति गुजरात से भिन्न नहीं है। इस प्रान्त में भी कपास का रकबा 10-15 प्रतिशत घटने का अनुमान लगाया जा रहा है। महाराष्ट्र में इस बार तुवर, सोयाबीन एवं मक्का को कपास पर वरीयता मिल सकती है।