iGrain India - नई दिल्ली । अगले दो सप्ताहों में गेहूं की सरकारी खरीद की प्रक्रिया समाप्त हो जाएगी जबकि वास्तविक रूप से यह पहले ही बंद हो चुकी है।
सरकारी विपणन क्रय केन्द्रों पर अब गेहूं नहीं पहुंच रहा है क्योंकि अधिकांश किसान अपना माल पहले ही बेचकर अब खरीफ फसलों की बिजाई में व्यस्त हो गए हैं।
सरकारी आंकड़ों में गेहूं की खरीद को मांग एवं जरूरत के लिहाज से पर्याप्त बताया जा रहा है और यह भी कहा जा रहा है व्यापारियों एवं मिलर्स के पास इसका अच्छा खासा स्टॉक है।
कृषि मंत्रालय ने गेहूं का उत्पादन उछलकर 1129 लाख टन के सर्वकालीन सर्वोच्च स्तर पर पहुंचने का अनुमान लगाया है लेकिन उद्योग व्यापार क्षेत्र का मानना है कि वास्तविक उत्पादन 1050 लाख टन से अधिक नहीं हुआ है। सामान्यतः तापमान घटने पर खपत बढ़ जाती है।
इस आधार पर आगामी महीनों के दौरान और खासकर रक्षा बंधन के बाद गेहूं की मांग तेजी से बढ़ सकती है जब त्यौहारी सीजन आरंभ होगा। दिसम्बर-जनवरी में गेहूं की बिजाई समाप्त होने तक मांग मजबूत बनी रह सकती है।
अगर पिछले साल की भांति इस वर्ष खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) सही समय पर आरंभ नहीं हुई तो फ्लोर मिलर्स / प्रोसेसर्स को व्यापारियों, स्टॉकिस्टों एवं बड़े-बड़े किसानों से गेहूं खरीदना पड़ेगा। भारी मांग निकलने पर गेहूं की कीमतों में स्वाभाविक रूप से बदलाव (इजाफा) हो सकता है।
महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि केन्द्रीय पूल में इस बार गेहूं का स्टॉक घटकर गत एक दशक के निचले स्तर पर रह गया है जबकि इस बार खुले बाजार में भी इसका सीमित स्टॉक बताया जा रहा है।
इससे मांग एवं आपूर्ति का समीकरण बिगड़ने की संभावना है। सरकार बार-बार यह दावा कर रही है कि उसके पास गेहूं का पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध है लेकिन उद्योग-व्यापार क्षेत्र इससे सहमत नहीं है। हो सकता है कि सामान्य अर्थ में यह स्टॉक पर्याप्त हो मगर किसी आपातकाल में मांग एवं जरूरत बढ़ी तो समस्या खड़ी हो सकती है।
घरेलू प्रभाग में बेहतर आपूर्ति एवं उपलब्धता सुनिश्चित करने तथा कीमतों में तेजी पर अंकुश लगाने के लिए विदेशों से गेहूं का आयात होना आवश्यक है। इतना तो लगभग निश्चित लग रहा है कि सरकार गेहूं के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को नहीं हटाएगी।