iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार द्वारा एक बार फिर खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में अच्छी बढ़ोत्तरी की गई है जिससे किसानों को बेहतर आमदनी प्राप्त होने की उम्मीद की जा सकती है लेकिन जानकारों-विशेषज्ञों का कहना है कि यह तभी संभव होगा जब सरकार किसानों से उन सभी 14 फसलों की पर्याप्त खरीद करे जिसके समर्थन मूल्य में इजाफा किया गया है।
एमएसपी के निर्धारण का जो मकसद है वह अवश्य पूरा होना चाहिए। अक्सर विभिन्न जिंसों का बाजार भाव घटकर न्यूनतम समर्थन मूल्य के नीचे आ जाता है और तब सरकारी खरीद के अभाव में किसानों को भारी नुकसान हो जाता है सरकार की खरीद निश्चित मात्रा और निश्चित अवधि तक सीमित रहती है।
धान को छोड़कर अन्य फसलों और खासकर दलहन, तिलहन तथा मोटे अनाजों के लिए यह नियम लागू रहता है। सिर्फ धान और कुछ हद तक कपास की खरीद बेहतर ढंग से की जाती है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सी) के कार्यकारी निदेशक का कहना है कि सिर्फ न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने से किसानों का भला नहीं होगा बल्कि सरकार को यह सुनिश्चित करना भी जरुरी है कि विभिन्न फसलों के लिए किसानों को समर्थन मूल्य अवश्य प्राप्त हो।
जब भी बाजार भाव घटे तब सरकार को इसकी खरीद के लिए तत्काल सक्रिय होना चाहिए। कई बार स्टॉक की अधिकता और कई बार कमजोर मांग के कारण जिंसों का दाम घट जाता है। ऐसे समय में किसानों को नुकसान से बचाने के लिए सरकारी खरीद शुरू करने की आवश्यकता पड़ती है।
उल्लेखनीय है कि 2023-24 की तुलना में 2024-25 सीजन के लिए सरकार ने खरीफ फसलों के समर्थन मूल्य में 1.4 प्रतिशत (मूंग) से लेकर 12.7 प्रतिशत (नाइजरसीड) तक की वृद्धि कर दी है।
दलहन-तिलहन फसलों की खरीद के लिए अधिकतम 25 प्रतिशत का उत्पादन नियत किया जाता है। यानी किसी राज्य में जितना अनुमानित उत्पादन होगा उसके एक-चौथाई भाग की खरीद समर्थन मूल्य पर हो सकती है।
इसकी समय सीमा भी 60 से 90 दिनों तक की नियत होती है। किसान अब एमएसपी पर भरोसा नहीं करते हैं इसलिए एक फसल को छोड़कर दूसरी फसल की तरफ आकर्षित होते रहते हैं। इससे उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका रहती है।