iGrain India - नई दिल्ली । भारत में पिछले कुछ वर्षों से अनाजी जिंसों की मांग एवं खपत की शैली में बदलाव देखा जा रहा है। कृषि मंत्रालय के अनुसार पिछले दो दशकों के दौरान अनाजों के घरेलू उत्पादन में डेढ़ गुणा से अधिक इजाफा हुआ है लेकिन प्रत्यक्ष मानवीय खपत में इसकी भागीदारी इस रफ्तार से नहीं बढ़ी है बल्कि प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात में इसका उपयोग तेजी से बढ़ा है
जिसमें ब्रेड, बिलकुट, केक, नूडल्स, वर्मी शैली, फ्लैक्स, पिज्जा आदि शामिल हैं। इसके अलावा हाल के वर्षों में पशु आहार, स्टार्च, पोटेबल शराब तथा एथनॉल निर्माण आंकड़ों से इसका स्पष्ट प्रमाण मिलता है कि प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के प्रति उपभोक्ताओं का रुझान एवं आकर्षण तेजी से बढ़ता जा रहा है।
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय की नवीनतम रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि प्रति माह एक व्यक्ति द्वारा अनाज की खपत की औसत मात्रा 1999-2000 से लेकर 2022-23 के बीच ग्रामीण क्षेत्र में 12.72 किलो से घटकर 9.61 किलो तथा शहरी इलाकों में 10.42 किलो से गिरकर 8.05 किलो रह गई है। दोनों क्षेत्रों को मिलाकर खपत में कुल प्रति व्यक्ति गिरावट 1999-2000 के 11.78 से गिरकर 8.97 किलो रह गई।
यदि इस खपत को 12 से गुणा करके वार्षिक स्तर पर आंकलन किया जाए तो औसत मात्रा और भी स्पष्ट हो जाती है। देश की विशाल जनसंख्या की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए चावल, गेहूं एवं मोटे अनाजों की भारी-भरकम मात्रा की आवश्यकता तो पड़ती है मगर अब इसकी औद्योगिक मंग के जबरदस्त इजाफा हो रहा है। आने वाले वर्षों में यह मांग और भी तेजी से बढ़ने की उम्मीद है।