iGrain India - नई दिल्ली । चालू वर्ष के आरंभ में केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने जोर देकर कहा था कि वर्ष 2027 तक भारत दाल-दलहन के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो जाएगा और वर्ष 2028 से विदेशों से एक किलो दलहन भी नही मंगाया जाएगा। उल्लेखनीय है कि दलहनों का आयात वित्त वर्ष 2022-23 में 25-26 लाख टन के बीच हुआ था जो 2023-24 के वित्त वर्ष (अप्रैल-मार्च) में उछलकर 40 लाख टन से ऊपर पहुंच गया।
इस पर विशाल धन धन राशि खर्च हुई और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर दबाव भी बढ़ गया। अपने तीसरे कार्यकाल के प्रथम 100 दिनों के एजेंडे में प्रधानमंत्री ने देश में दलहन तिलहन फसलों के उत्पादन में जोरदार बढ़ोत्तरी करने की आवश्यकता पर जोर दिया है क्योंकि अब भी भारत दलहनों एवं खाद्य तेलों का सबसे प्रमुख आयातक देश बना हुआ है।
अपने पिछले बजट भाषण में केन्द्रीय वित्त मंत्री ने सरसों, सोयाबीन, मूंगफली, तिल एवं सूरजमुखी जैसी तिलहन फसलों के उत्पादन संवर्धन हेतु नई नीति बनाने की घोषणा की थी। अब सरकार दलहनों का उत्पादन बढ़ाने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रही है।
कुछ राज्यों में कहा गया है कि परम्परागत क्षेत्रफल को बरकरार रखते हुए नए-नए क्षेत्रों में दलहनों की खेती का दायरे बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाए।
इसके तहत खासकर धान की कटाई होने के बाद खाली हुए खेतों में दलहन फसलों की खेती आरंभ की जानी चाहिए। भारत में कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, म्यांमार एवं अफ्रीकी देशों से दलहनों का आयात किया जाता है।
सरकार ने 2024-25 के सीजन हेतु अरहर का समर्थन मूल्य बढ़ाकर 7750 रुपए प्रति क्विंटल, उड़द का समर्थन मूल्य 7400 रुपये प्रति क्विंटल तथा मूंग का समर्थन मूल्य 8682 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया है।