iGrain India - नई दिल्ली । धान की भांति गन्ना की फसल को भी सिंचाई के लिए पानी की भारी मात्रा की आवश्यकता पड़ती है। इसके अलावा गन्ना की क्रशिंग से लेकर एथनॉल के निर्माण तक की प्रक्रिया में भी पानी का भारी उपयोग किया जाता है। देश में घटते जल स्तर को देखते हुए यह स्थित अच्छी नहीं मानी जा सकती।
केन्द्रीय खाद्य, उपभोक्ता मामले एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री प्रहलाद जोशी का कहना है कि अनुसन्धान एवं विकास संस्थानों को इस तरफ विशेष ध्यान देना चाहिए। गन्ना की ऐसी प्रजातियों के विकास की आवश्यकता है जिसे पानी की कम जरूरत पड़े। सरकार गन्ना के उत्पादकों एवं चीनी के उपभोक्ताओं- दोनों के हितो में बेहतर संतुलन बनाने का प्रयास करती आ रही है।
खाद्य मंत्री का यह दावा सही भी है। एक तरफ गन्ना के उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) में नियमित रूप से प्रत्येक वर्ष बढ़ोत्तरी की जा रही है तो दूसरी और चीनी का एक्स- फैक्टरी न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) वर्ष 2019 से ही 3100 रुपए प्रति क्विंटल पर स्थिर है।
सरकार ने घरेलू प्रभाग में आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने तथा क़ीमतों में स्थिरता लाने के उद्देश्य से जून 2023 में चीनी के व्यापारिक निर्यात पर अनिश्चित कालीन प्रतिबंध लगा दिया जो वर्तमान समय में भी बरकरार है जबकि उससे पूर्व 60 लाख टन चीनी के निर्यात की स्वीकृति दी गई थी। 60 लाख टन का शिपमेंट होने के बाद चीनी के निर्यात को रोक दिया गया।
खाद्य मंत्री ने एथनॉल का उत्पादन तेजी से बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया है ताकि पेट्रोल में इसके 20 प्रतिशत मिश्रण के लक्ष्य को हासिल करने में सहायता मिल सके।
अभी 12 प्रतिशत मिश्रण का लक्ष्य ही प्राप्त हो चला है। खाद्य मंत्री के अनुसार भारतीय घरों में परम्परागत रूप से चीनी की अच्छी खपत होती रही है और प्रत्येक मांगलिक उत्सवों पर चीनी से निर्मित मिष्ठान वितरण की परम्परा रही है।
गन्ना के तीन शीर्ष उत्पादक राज्यों में उत्तर, प्रदेश, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक शामिल है। इसके अलावा तमिलनाडु, गुजरात, बिहार, पंजाब, हरियाणा एवं मध्य प्रदेश सहित कुछ अन्य राज्यों में भी गन्ना तथा चीनी का अच्छा उत्पादन होता है।