iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार ने खरीफ कालीन दलहन, तिलहन एवं मोटे अनाजों (मिलेट्स) के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में अच्छी बढ़ोत्तरी कर दी है जिससे किसानों को राहत मिलने की संभावना है।
लेकिन यह राहत तभी मिल सकती है जब सरकार स्वयं समर्थन मूल्य पर इसकी पर्याप्त खरीद करे अथवा उद्योग-व्यापार क्षेत्र को इसे खरीदने के लिए प्रेरित- प्रोत्साहित करे दरअसल एक तरफ सरकार किसानों से सीमित मात्रा में दलहन तिलहन की खरीद करती है और दूसरी ओर उद्योग-व्यापार पर अनेक तरह के नियंत्रण लगा देती है जिससे उसे ऊंचे दाम पर इसकी खरीद करने का प्रोत्साहन नहीं मिलता है।
इस वर्ष दक्षिण-पश्चिम मानसून के सीजन में अच्छी वर्षा होने की उम्मीद है जिससे किसानों को उपरोक्त फसलों का बिजाई क्षेत्र एवं उत्पादन बढ़ाने में सहायता मिल सकती है।
उत्पादन में वृद्धि के साथ यदि किसानों को अपने उत्पादों का आकर्षक एवं लाभप्रद मूल्य प्राप्त हो गया तो आगे भी इसकी खेती के प्रति उसका उत्साह एवं आकर्षण बरकरार रहेगा।
यह आवश्यक भी है क्योंकि घरेलू प्रभाग में मांग एवं आपूर्ति के बीच विशाल अंतर रहने के कारण भारत दुनिया में दलहनों एवं खाद्य तेलों का सबसे बड़ा आयातक देश बना हुआ है। इस पर भारी-भरकम बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च होती है।
पिछले साल की तुलना में इस बार अधिकांश खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 6 से 12 प्रतिशत के बीच बढ़ोत्तरी की गई है।
सरकार दलहन-तिलहन के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है लेकिन इसके लिए जो प्रयास आवश्यक है उन पर विष ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
उदाहरणस्वरूप सरकार ने टैरिफ रेट कोटा प्रणाली के तहत सूरजमुखी तेल एवं रिफाइंड रेपसीड तेल के आयात की अनुमति प्रदान की है जबकि इसकी कोई आवश्यकता नहीं है।
सूरजमुखी तेल का विशाल आयात काफी सस्ते दाम पर पहले से हो रहा है जबकि सरसों तेल का भाव एक निश्चित सीमा में स्थिर बना हुआ है।