iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार ने घरेलू प्रभाग में आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने तथा कीमतों में तेजी पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सितम्बर 2022 में 100 प्रतिशत टूटे चावल तथा जुलाई 2023 में गैर बासमती सफेद (कच्चे) चावल के व्यापारिक निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था।
इसके बाद अगस्त 2023 में गैर बासमती सेला चावल पर 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लागू कर दिया। इससे निर्यातकों का कारोबार बुरी तरह प्रभावित होने लगा।
अब राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ने केन्द्र से सफेद चावल और टुकड़ा चावल के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को समाप्त करने और सेला चावल की भांति इस पर एक निश्चित दर का सीमा शुल्क लगाने का आग्रह किया है।
निर्यातकों का कहना है कि एक निश्चित सीमा शुल्क के साथ इसके निर्यात की अनुमति दी जानी चाहिए। सेला चावल पर 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लागू है और इसका सामान्य ढंग से शिपमेंट भी हो रहा है लेकिन इसके बावजूद कीमतों में कोई अप्रत्याशित उछाल नहीं आया है।
एसोसिएशन ने केन्द्रीय खाद्य मंत्री को प्रेषित एक पत्र में कहा है कि सेला चावल पर जो एक मुश्त 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लागू है उसे हटाकर इसकी जगह एक निश्चित राशि में सीमा शुल्क लगाया जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि देश से लगभग 80 प्रतिशत गैर बासमती चावल का निर्यात इस एसोसिएशन के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
एसोसिएशन के अनुसार भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास न्यूनतम अनिवार्य बफर जरूरतों की तुलना में करीब 4 गुणा अधिक चावल का स्टॉक उपलब्ध है जिसे स्टॉक से बाहर निकाला जा सकता है।
घरेलू बाजार में चावल की आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने में इस विशाल स्टॉक का उपयोग किया जाना चाहिए और मिलर्स एवं स्टॉकिस्टों के पास सफेद चावल का जो अधिशेष स्टॉक मौजूद है उसके निर्यात शिपमेंट की अनुमति दी जानी चाहिए।
इससे सरकार को सब्सिडी के भार में कटौती करने का अवसर मिलेगा और सफेद चावल तथा टुकड़ी चावल के निर्यात से शुल्क राजस्व भी प्राप्त होगा। इस बार अनुकूल मौसम एवं सामान्य मानसून के कारण चावल का घरेलू उत्पादन भी बेहतर होने की उम्मीद है।