iGrain India - नई दिल्ली । जून से सितम्बर के चार माह की अवधि में सक्रिय रहने वाले दक्षिण-पश्चिम मानसून के सीजन में सर्वाधिक वर्षा जुलाई में होती रही है।
चालू वर्ष के दौरान भी जुलाई के प्रथम हाफ (पखवाड़ा) में राष्ट्रीय स्तर पर सामान्य मौसम से करीब 9 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई जबकि 1 से 7 जुलाई के बीच 39 प्रतिशत अधिशेष वर्षा दर्ज की गई थी।
इससे साफ संकेत मिलता है कि जुलाई के दूसरे सप्ताह में मानसून कमजोर रहा और देश के अनेक भाग में सामान्य से कम वर्षा हुई।
मौसम विभाग ने चालू सप्ताह के दौरान मानसून की सक्रियता एवं तीव्रता बढ़ने की संभावना व्यक्त की है जो खरीफ फसलों की बिजाई एवं प्रगति के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं उपयोगी साबित होगी और इससे वर्षा में आने वाली कमी की भरपाई हो सकेगी।
जुलाई में ही खरीफ फसलों की सर्वाधिक बिजाई होती है। मौसम विभाग के मुताबिक पिछले सप्ताह मानसून की वर्षा 15 प्रतिशत कम हुई। सिर्फ दक्षिणी प्रायद्वीप को छोड़कर देश के अन्य सभी मौसम उपखंडों में बारिश भारी अभाव दर्ज किया गया। इससे कुछ राज्यों में वर्षा की कमी का दायरा बढ़ गया।
मौसम विभाग के अनुसार 15 जुलाई को बंगाल की खाड़ी के ऊपर दक्षिणी उड़ीसा तट के पास कम दाब के एक क्षेत्र के निर्माण हुआ जबकि अगले कुछ दिन में (19 जुलाई तक) कम दाब का एक और क्षेत्र बनने की संभावना है जिससे मानसून की वर्षा में अकस्मात मगर उम्मीद के अनुरूप वर्षा होने की संभावना है।
जुलाई के दूसरे पखवाड़े में देश के कई भागों में बारिश का जोर रहने की उम्मीद है। जून में मानसून की वर्षा सामान्य औसत से 11 प्रतिशत कम हुई थी।
जुलाई में जोरदार बारिश होने का अनुमान लगाया जा रहा था मगर पहले पखवाड़े में इसका ठोस संकेत नहीं मिला।
वैसे 15 जुलाई तक खरीफ फसलों का कुल उत्पादन क्षेत्र बढ़कर 575 लाख हेक्टेयर से ऊपर पहुंच गया जो पिछले साल की उसी अवधि के बिजाई तेल 521 लाख हेक्टेयर से 54 लाख हेक्टेयर ज्यादा तथा सामान्य औसत क्षेत्रफल 1096 लाख हेक्टेयर के 50 प्रतिशत से अधिक है। चिंता की बात यह है विदेश के कुछ राज्य अभी तक बारिश की भारी कमी के संकट से जूझ रहे हैं।