iGrain India - नई दिल्ली । आमतौर पर केन्द्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा विभिन्न फसलों की बिजाई, उपज दर एवं कुल पैदावार का जो आंकड़ा जारी किया जाता है वह विभिन्न राज्यों द्वारा भेजे गए ब्यौरे पर आधारित होता है।
अक्सर इस ब्यौरे में कई त्रुटियां होती हैं और इसलिए कृषि मंत्रालय का आंकड़ा कई बार वास्तविकता से मेल नहीं खाता है।
गेहूं, चना, अरहर (तुवर), सरसों तथा कुछ अन्य फसलों के साथ यह घटना बार बार हो रही है जिससे न केवल घरेलू बाजार में अनिश्चितता का माहौल रहता है बल्कि सरकार को नीति बनाने में भी कठिनाई होती है।
इसे देखते हुए केन्द्रीय कृषि सचिव ने राज्यों से कृषि फसलों के उत्पादन का अनुमान लगाने के क्रम में नई-नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने एवं बेहतर तकनीकी प्रक्रिया को लागू करने (अपनाने) का आग्रह किया है।
इससे कृषि उत्पाद का विश्वसनीय आंकड़ा सामने लाने में सहायता मिलेगी। इस दिशा में राज्यों तथा केन्द्र के बीच निरंतर सहयोग की आवश्यकता है ताकि कृषि सांख्यिकी की गुणवत्ता को ऊंचे स्तर पर रखा जा सके।
जिन नई तकनीकी प्रक्रियाओं एवं टेक्नोलॉजी को बड़े स्तर पर अपनाने की जरूरत पर जोर दिया गया है उसमें डिजीटल फसल सर्वेक्षण, डिजीटल जनरल क्रॉप एस्टीमेशन सर्वे और रिवैम्प 'फसल' (फोर कास्टिंग एग्रीकल्चरल आउटपुट यूजिंग स्पेस, एग्रो मेटोरोलॉजी एंड लैंड बेस्ड ऑब्जर्वेशन) प्रोग्राम भी शामिल है।
डिजीटल क्रॉप सर्वे की डिजाइन फसलों की कुल भौगोलिक स्थिति के साथ प्लॉट स्तर पर आंकड़ा प्रदान करने के लिए तैयार की गई है।
दरअसल देश में कभी बाढ़, कभी सूखा एवं कभी कीड़ों-रोगों के प्रकोप से विभिन्न फसलों को नुकसान होता रहता है मगर इसका सटीक आंकलन करने के बजाए मोटा अनुमान लगाया लिया जाता है।
इससे अनुमानित उत्पादन तथा वास्तविक पैदावार के आंकड़ों में अंतर रहता है। राज्यों के अनुमानित ब्यौरे के आधार पर ही केन्द्र (कृषि मंत्रालय) का उत्पादन अनुमान सामने आता है जो कई बार संदेहास्पद बन जाता है।