iGrain India - नई दिल्ली । पिछले साल के मुकाबले चालू वर्ष के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर धान, अरहर (तुवर), मूंग, मक्का, ज्वार, सोयाबीन, मूंगफली एवं गन्ना जैसी खरीफ फसलों के बिजाई क्षेत्र में वृद्धि हुई है लेकिन दूसरी ओर उड़द, मोठ, बाजरा, तिल, अरंडी एवं कपास के क्षेत्रफल में गिरावट भी आई है।
इस बार खरीफ फसलों का कुल सामान्य औसत क्षेत्रफल 1096 लाख हेक्टेयर आंका गया है जबकि वास्तविक रकबा इसके काफी करीब पहुंच गया है।
खेती के दायरे को देखते हुए खरीफ फसलों का कुल उत्पादन सामान्य या उससे बेहतर रहने की उम्मीद की जा सकती थी लेकिन देश के अनेक भागों में जुलाई-अगस्त के दौरान घनघोर बारिश होने तथा बाढ़ का प्रकोप रहने से फसलें बुरी तरह प्रभावित हुई है इसलिए कुल खरीफ उत्पादन के बारे में फ़िलहाल कोई निश्चित अनुमान लगाना बेहद कठिन है।
मौसम विभाग ने जुलाई-अगस्त की भांति सितम्बर में भी राष्ट्रीय स्तर पर दीर्घ कालीन औसत की तुलना में करीब 9 प्रतिशत अधिशेष वर्षा होने का अनुमान लगाया है।
देश के अधिकांश इलाकों में खरीफ फसलों की बिजाई प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और फसलें प्रगति के विभिन्न चरण में है।
सितम्बर के मध्य से कई जिंसों की अगैती बिजाई वाली फसल की छिटपुट कटाई-तैयारी आरंभ हो जाने की संभावना है। लेकिन इन फसलों को बाढ़-वर्षा एवं खेतों में जल जमाव से नुकसान होने की आशंका है।
समीक्षकों के अनुसार अधिशेष वर्षा से धान, तुवर एवं मूंगफली जैसी फसलों को ज्यादा क्षति नहीं होगी मगर बाजरा, सोयाबीन, मूंग एवं उड़द की फसल को काफी नुकसान पहुंच सकता है।
चार माह की अवधि वाले दक्षिण-पश्चिम मानसून के सीजन में सितम्बर माह के दौरान करीब 19 प्रतिशत बारिश होती है।
बंगाल की खाड़ी में एक के बाद एक कम दाब का क्षेत्र बनने से मानसूनी वर्षा की तीव्रता बढ़ने की संभावना है। उधर पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता भी बढ़ने के आसार है।
यह देखना भी दिलचस्प होगा कि मानसून अपने सही समय पर विदा होगा या इसके प्रस्थान करने में देर हो जाएगी।